________________
प्राचार्य शिय्यंभव सूरी. पिता शिय्यंभव, जो भाज कल आप के प्राचार्य कहलाते हैं, इस नगर में हैं ? प्राचार्यश्रीने उत्तर दिया. " सो तो ठीक, पर तुम्हें उनसे अब क्या सरोकार है। क्या तुम्हें पिता के पास दीक्षा लेना है १" मनकने उत्तर दिया. " जी हाँ, मेरी इच्छा है कि मैं भी दीक्षा लूं" । आचार्यश्रीने कहा कि यदि तुम्हारी ऐसी ही इच्छा हो तो चलो मेरे साथ । मैं वही हूं। तुम्हें दीक्षा दूंगा । मनक की दीक्षा समारोह के साथ हुई । आचार्यश्रीने विचार किया कि इस मनक मुनि को कुछ अधिकार देना चाहिए क्योंकि श्रुतज्ञान के योग से ज्ञात हा कि इस की प्राय स्वल्प है। प्राचार्यश्री जो शिक्षा प्रणाली से पूर्ण परिचित थे इस मुनि के पाठ्यक्रम की नई योजना करने लगे। पाठ्यक्रम बनाने के हेतु से पूर्वांग उद्धृत कर वैकाल के अन्दर दशाध्ययन सङ्कलितकर उसका नाम दसवैकालिक सूत्र नाम रख दिया और मनक मुनिने इस सूत्र का अध्ययन कर केवल अर्द्ध वर्ष में ही प्रागधिपद प्राप्त कर स्वर्ग की भोर प्रस्थान किया । .
जिस समय मनक मुनि का देहान्त हुआ उस समय आचार्यश्री के प्रांखोंसे प्रांसुओं की झड़ी लग गई । इन प्रेमाश्रुओं से अन्य मुनियोंने उदासीनता समझकर प्राचार्यश्री से प्रश्न किया कि
आप की इस दशा का क्या कारण है ? प्राचार्यश्रीने उत्तर दिया कि यह मेग सांसारिक नाते से पुत्र और धार्मिक नाते से लघु शिष्य था । ऐसी छोटी उम्र में इसने चारित्र पाराधनकर उस पद को प्राप्त किया है इसी का मुझे खेद नहीं-हर्ष है।