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जैन जाति महोदय.
भी नही कहलाते थे उस जमानेके सिंह व्याघ्रादि पशु भी भद्रिक. वैरभावरहित, शान्तचित्तवाले ही थे जैसे जैसे काल निर्गमन होता रहा वैसे वैसे वर्ण गन्ध रस स्पर्श संहनन संस्थान देहमान आयुष्यादि सबमें न्यूनता होती गई। यह सब अवसर्पिणी कालका ही प्रभाव था ।
( २ ) दूसरा हिस्साका नाम सुषमारा वह तीन क्रोडाक्रोड सागरोपमका था इस समय भी युगलमनुष्य पूर्ववत् ही थे पर इनका देहमान दो गाउ और आयुष्य दो पल्योपमका था प्रतिपालन ६४ दिन पास अस्थि १२८ और भी कालके प्रभाव से सब वातों में क्रमशः हानि होती आई थी ।
( ३ ) तीसरा हिस्साका नाम सुषमदुः षमारा यह दो कोडा कोड सागरोपमका था एक पल्योपमका आयुः एक गाउ का शरीर ७९ दिन प्रतिपालन ६४ पासास्थि आदि क्रमशः हानि होती रहीं इसके तीन हिस्सों से दो हिस्सा तक तो युगलधर्म्म बराबर चलता रहा पर पीच्छला हिस्सा में कालका प्रभावसें कल्पवृक्ष फल देनेमें संकोच करने लगे इस कारण सें युगल मनुष्यों में ममत्वभावका संचार हुवा जहां ममत्वभाव होता है। वहां कलेश होना संभावित है जहां क्लेश होता है वहां इन्साफ की भी परमावश्यक्ता हुवा करती है । युगल मनुष्य एक एसा न्यायधीश की तलासी में थे उस समय एक युगल मनुष्य उज्ज्वल वर्ण के
हस्ती पर सवारी कर इधर-उधर घूमता था युगलमनुष्योंनें सोचा कि यह सबसे बडा मनुष्य है कारण की इस के पहले कीसी युगलमनुयोंनें सवारी नहीं करी थी सब युगल मनुष्य एकत्र हो
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