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जैन जाति महोदय प्र० तीसरा.
नियम एसे तो सिधे और सरल रखा था कि कितने ही अज्ञलोग'उन बुद्धकी जालमें फंस गये क्रमशः बुद्धने मांस मदिराकी भी छुट देदी फिर तो कहना ही क्या ? जो वेदान्तियो के यज्ञ कर्मसे त्रासित हुई जनता बुद्ध के जंडा निचे शीघ्रही आगई उस समय जैन जनता की संख्या भी कम नहीं थी पर जैनधर्म केवल आत्मकल्याण पर ही निर्भर है और इनके नियम भी इतने सख्त हैं कि संसारलब्ध जीवों को पालना वडा ही मुश्किल है उनको वह ही पाल सक्ते है कि जिन को आत्मकल्याण करना हो। __भगवान महावीर ३० वर्ष गृहवास में रहे मातापिता का स्वर्ग- . वास होने के बाद वर्षीदान देकर नरेन्द्रदेवेन्द्रों के महोत्सवपूर्वक दीक्षा . धारण की। भगवान ने १२॥ वर्ष तक घोर तपश्चर्या करते हुवे अनेक देव मनुष्य और तीर्यचों के बड़े बड़े उपसर्गो और परिसहों को सहन करते हुवे पूर्व संचित दुष्ट कर्मों का क्षय कर कैवल्य ज्ञान दर्शन को प्राप्त कर लीया. आप सर्वज्ञ वितगग ईश्वर परमब्रह्म लोकालोक के चराचर पदार्थों का भाव एक ही समय में देखने जानने लगे पूर्व तीर्थकरों ने निर्देश किया हुवा “ अहिंसा परमोधर्म" का तथा तत्व ज्ञान, अध्यात्म ज्ञान का बडे ही तेजी से प्रचार कीया और पूर्व नियमों का संशोधन करते हुवे भगवान् महावीरने बडे ही बुलंद आवाज ।
३ बोद्ध ग्रन्थोमें लिखा है कि बुध्ध एक राजा शुध्धोदीत का पुत्र था वह तापसों के पास दीक्षा लीथी बोधि होनेके बाद अहिंसा धर्म का खुब प्रचार कीया था इसका समय भगवान महावीर के समकालिन माना जाता है कुछ भी हो. बुध्धने जैनोंसे अहिंसा धर्म की शिक्षा जरूर पाई थी..