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४-५-६-७-८ वा तीर्थकर.
(२९) कि कुक्षी में अवतीर्ण हुवे. जेष्ट शुद १२ को जन्म, २०० धनुष्य सुवर्ण-सात्थियां का लञ्छनवाला शरीर, पाणिग्रहन राज भोगव के जेष्ट शुद १३ को एक हजार पुरुषों के साथ दीक्षा-फागण वद ६ को कैवल्यज्ञान हुवा. विक्रमादि ३००००० मुनि, शीमादि ४३०००० साध्वियों, २५७००० श्रावक, ४६३००० श्राविकाओं कि सम्प्रदाय हुई. वीसलक्ष पूर्व का सर्वायुष्य पूर्ण कर फागण वद ७ को सम्मेतशिखरपर मोक्ष सिधाये. आप का शासन नौसो क्रोड सागरोपम तक चलता रहा।
(८) श्री चंदाप्रभ तीर्थकर-विजयंत वैमान से चैत्र वद ५ को चंद्रपुरी नगरी महासेनराजा लक्ष्मणाराणि कि रत्नकुक्षी में अवतार धारण कीया. पौष वद १२ को जन्म हुवा. १५० धनुष्य श्वेतवर्ण चंद्र लञ्छनवाला शरीर, पाणिग्रहन-राज भोगव के पोष वद १३ को एक हजार पुरुषों के साथ दीक्षा ली. फागण वद ७ को कैवल्यज्ञान हुवा. दीनादि २५०००० मुनि, सुमनादि ३.८०००० साध्वियों, २५०००० श्रावक, ४७६००० श्राविकाओं कि सम्प्रदाय हुई. दशलक्ष पूर्व का सर्वायुष्य पूर्ण कर भाद्रवा वद ७ को सम्मेतशिखरपर मोक्ष पधारे. ६० क्रोड सागरोपम तक शासन चला. यहां तक तो इस भरतक्षेत्र में प्रायः सर्वत्र जैनधर्म एक राष्ट्रीय धर्म ही था ।
(६ ) श्री सुविधिनाथ तीर्थकर-आणत वैमान से फागण वद ६ को काकंदी नगरी सुग्रीवराजा-रामाराणि कि कुक्षी में अवतीर्ण हुवे. मृगशर वद ५ को जन्म, १०० धनुष्य श्वेतवर्ण