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हाथीगुफाका शिलालेख।
तो पहली पंक्तिके प्रारम्भमें एक दूसरेके हाथीगुफाका शिला-लेख।
ऊपर हाशिए पर खुदे हुए हैं, जिनमें
- पहला चिह्न वर्तमान राज-मुकुटकी भाँति जैन सम्राट् खारवेलका इतिहास।
है, और यह जैनियोंके अष्ट-मंगलों मेसे [ लेखक-कुमार देवेन्द्रप्रसादजी, पारा।] बद्धमंगल कहलाता है । इसी चिहके नीचे
उडीसा प्रान्तके 'खण्डगिरि पर्वतपर. दूसरा प्रसिद्ध 'स्वस्तिक' नामक चिह्न है। जो कि कटकके पास भुवनेश्वरसे ४-५
तीसरा चिह्न "नन्दिपद” है। यह प्रथम मीलकी दूरी पर है, 'हाथीगुफा' नामका
का पंक्तिमें 'खारवेल' के नामके ठीक नीचे एक प्राचीन सुरम्य स्थान है, जहाँ एक खुदा है। और चौथा चिह्न एक वृक्षकाप्राचीन शिला-लेख पुराने गौरवको अपनी गोदमें लिये हुए है। इस शिलालेखका
आजकल इस लेखकी दशा, प्रायः दो क्षेत्रफल १५-१" ४५६' (लगभग ४ हजार वर्षकी गर्मी, सर्दी और वर्षाक वर्ग फीट) है। इसमें १७ पंक्तियाँ हैं और
कारण, विकृत हो गई है। बरौंने भी, प्रत्येक पंक्तिकी अक्षर-संख्या ६० और
लेखके ऊपर अपने छत्ते बनाकर, उसकी १०.के बीचमें है। अक्षरोंका आकार प्राकृतिको बिगाड़नेमें कोई कसर नहीं ३१ इंचसे लेकर इंचतक पाया जाता। रक्खी। इसीसे उसकी कई पंक्तियाँ तो है। गुफाके मध्य में निकले हुए एक सफेद अभीतक पढ़ी ही नहीं जा सकी। . बलुए पत्थरकी चट्टान पर यह लेख खुदा हुआ है। आजकल धरातलसे यह लेख .यद्यपि सबसे पहले डा. भगवानबहुत ऊँचाई पर है । परन्तु किसी समय- लाल इन्द्रजीने, सन् १८६६ में इस लेखकी में वह ज़रूर ऐसे स्थान पर स्थित होगा, एक प्रतिलिपि तैयार की थी, परन्तु जहाँ मनुष्य सहजहीमें पृथ्वीपर खड़े इसका पता १८२५ में ही पुरातत्त्ववेत्ताओंहोकर उसे पढ़ सकते होंगे। कालान्तरमें को लग चुका था। और तबसे अबतक भूमिके नीचेकी ओर धंस जाने के कारण इसके विषयमें बराबर विद्वानों द्वारा लेखकी ऊँचाई निःसन्देह अधिक हो गई अनुसन्धान और विवाद जारी रहा। है। आजकल तो वह इस ऊँचाईकी वजह- डा. फ्लीटने डा० भगवानलालके किये से बड़ी कठिनताके साथ पढ़ने में आता है। हुए उक्त लेखके अर्थकी आलोचना की
इस लेखकी भाषा अपभ्रंश प्राकृत और उसे कई स्थानों पर गलत बताया। है। परन्तु यत्र-तत्र अर्ध-मागधी और
अन्तमें, पाटलिपुत्रके सुप्रसिद्ध विद्वान् जैन-प्राकृतके भी कुछ लक्षण पाये जाते
श्रीयुत काशीप्रसादजी जायसवाल एम० हैं। प्राचीन पाली-भाषा और उस लेख
ए. बैरिस्टर-एट-लाकी प्रार्थना पर, की भाषामें बहुत कुछ सादृश्य है।
श्रीयुत आर. डी. बनर्जी महोदयने उक्त लेखकी लिपि उत्तरी-ब्राह्मी है, जिसका शिलालेखसे डा. भगवानलालकी प्रतिसमय बृहर (Buhler) साहबके मता- लिपिको मिलाया और उससे उन्हें यह नुसार ईसासे प्रायः १६० वर्ष पूर्व (160 ज्ञात हुआ कि डा. भगवानलालकी प्रतिB.C.) है।
लिपि पूर्णरूपेण विश्वसनीय नहीं है। लेखमें चार चिह्न हैं। प्रथम दो चिह्न परन्तु कुछ भी हो, इसमें सन्देह नहीं कि
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