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विशेष अनुसन्धान ।
जिनेन्द्र देवाचार्यका, इस विषयमें सिर्फ ... सिद्धान्तसार ।
इतना बतला देना काफ़ी होगा कि मूल इस नामके जो तीन ग्रन्थ भवनकी ग्रन्थमें 'जिणइन्देण' ऐसा पाठ है और सूचीमें दिये हुए हैं उनमें से जिसका कर्ता उसके टिप्पणके तौर पर 'जिनेंद्रदेवाचार्यभट्टारकसकालकीर्ति लिखा है वह 'सिद्धा. निन्दगताः' ऐसा अर्थ सूचित किया है। न्तसार' नहीं, किन्तु उसका नाम कनड़ी टीकावाली प्रतिके मूलमें 'जिन'सिद्धान्तसारदीपक' ही है, जैसा कि चन्द्रेण' पाठ दिया है, परन्तु अर्थमें वही हमने पहले सूचित किया था। दूसरा 'जिनेंद्रदेवाचार्य' नाम सूचित किया है। प्रन्थ जो जिनेन्द्रदेवाचार्यके नामसे पहले और संस्कृत टीकामें मूल पाठ वही प्रन्थके नीचे दिया है, वह वही प्राकृत 'जिणइन्देण' रक्खा है और उसका अर्थ
जिसका मंगलाचरण हमने सेठ 'जिनचन्द्रनाना सिद्धान्तग्रन्थवेदिना' माणिकचन्द्र के 'प्रशस्तिसंग्रह' रजिस्टरके दिया है। इन सब उल्लेखों पर विचार अधार पर उद्धृत किया था। परन्तु इसकी करते हुए, हमारी रायमें, ग्रन्थकर्ताका गाथा-संख्या ७७ के स्थानमें ८० है। तीसरा नाम ज्यादातर 'जिनचन्द्र' ही प्रतीत प्रन्थ भी यही प्राकृत ग्रन्थ है जो कनडी होता है । अस्तु; भवनके ये सब ग्रन्थ उस अक्षरोंमें लिखा हुआ है। हाँ, इसके साथ सिद्धान्तसार नामके तर्क ग्रन्थसे भिन्न प्रभाचन्द्रकी बनाई हुई कनडी टीका हैं जिसका उल्लेख श्रीजयशेखर सुरिने अधिक लगी हुई है। सूचीमें इसकी अपने 'षड्दर्शन समुच्चय' नामके ग्रन्थमें भाषा संस्कृत गलत दी है और पत्र- किया है और जिसकी खोजके लिए ही संख्या भी ४० के स्थानमें १४३ ग़लत दर्ज वह नोट लिखा गया था। इस तर्क ग्रन्थ
की है। इस ग्रन्थकी एक संस्कृत टीका का पता लगाते हुए हमें मूडबिद्रीके . भी हालमें भवनको उपलब्ध हुई है पंडुवस्ति भंडारकी सूची परसे यह मालूम
जो माणिकचन्द्र ग्रन्थमालामें प्रकाशित है कि वहाँ 'सिद्धान्तसार प्रमाण, " होने योग्य है । यह टीका किसकी बनाई नामका एक संस्कृत ग्रन्थ है, जिसकी हुई है, इसका यद्यपि अभीतक ठीक श्लोक-संख्या ७०० (सात सौ) है और जो निश्चय नहीं हुआ, तो भी टीकाकारके 'भावसेन' मुनिका बनाया हुआ है। निम्नलिखित मंगलाचरणपरसे ऐसा ग्रन्थके नामके साथ 'प्रमाण' शब्द लगा ख़याल उत्पन्न होता है कि शायद यह होनेसे साफ जाहिर है कि यह तर्क ग्रन्थ टीका शानभूषण भट्टारककी बनाई हुई है है और 'भावसेन' मुनि भी बहुत बड़े जो कि विक्रमकी १६ वीं शताब्दीमें हो तार्किक विद्वान् हुए हैं, इसलिये बहुत करके गये हैं :
यह दिगम्बरोंका वही तर्क-ग्रन्थ जान पड़ता श्रीसर्वशं प्रणम्यादौ
है जिसे जयशेखर सूरिने जयलक्ष्मीको लक्ष्मीवीरेन्द्रसेवितं ।
दिलानेवाला परमकर्कश तर्कग्रन्थ प्रति
पादन किया है। अतःमाणिकचन्द्र ग्रन्थभाध्यं सिद्धान्तसारस्य
माला और भवनके मंत्री साहवानको वक्ष्ये ज्ञानसुभूषणम् ॥ १॥ यह ग्रन्थ उक्त भण्डारसे नकल कराकर प्राकृतका यह सिद्धान्तसार ग्रन्थ शीघ्र मँगाना चाहिए और इसका जल्दी 'जिनचन्द्र' का बनाया हुआ है या कि उद्धार करना चाहिए।
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