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११० जैनहितैषी।
[भाग १५ किन्तु ( यदि ) यह सभा उस हीको धर्म पर आपको मालूम हो कि कलकत्ता समझती है जिसके अनुसार ऋतुमती पंचायतीने "सत्योदय" आदि पत्रोंका : स्त्रीके साथ उसके पतिके संयोग न करनेसे वहिष्कार न करके केवल समाजको यह भ्रणहत्याका पाप होता है तो प्रत्येक सूचना दी थी कि इनको दि० जैन पत्र न समझदार मनुष्यका कर्तव्य है कि ऐसे समझे और ऐसा जानकर न पढ़े जो धर्मका खब विरोध करे और उसकी बहत श्रावश्यक बात थी इस टिप्पणी.
काटनेका भरसक प्रयत्न करे। जैन- के द्वारा ब्रह्मचारीजीने यह सचित किया हितैषी आदि ऐसा ही प्रयत्न करते हैं, है कि सेठ लालचन्दजीने कुछ पत्रोंकी अतः वे हमारी प्रशंसा और धन्यवादके जो बात अपने व्याख्यानमें कही है वह पात्र हैं। जो लोग धर्मज्ञ पण्डित कहला- गलत है। वास्तवमें सत्योदयादि पत्रोंका कर ऐसी घृणित बातोंका प्रचार करते हैं कलकत्तेकी सभा या पंचायतीने बहिष्कार वे ही सच्चे जैन धर्मके घातक हैं और नहीं किया बल्कि सिर्फ यह सूचना उन्हींका बहिष्कार उचित है। इसपर तो निकाली थी कि इन पत्रोंको जैन पत्र न पंडित जी (धन्नालाल) बहुत उछले कूदे। समझा जाय और न उस दृष्टिसे पढ़ा किन्तु सभापतिने अशांति न होने दी। जाय जिसका अभिप्राय यह था कि इन ............वोटके समय चार पाँच वोट पत्रोंको पढ़ा तो जरूर जाय परन्तु पढ़ते मेरी ओर थे।"
समय मनमें यह सोच लिया जाय कि ये इससे पाठक यह समझ सकते हैं कि जैन पत्र नहीं हैं । परन्तु बात ऐसी नहीं यह प्रस्ताव कितना महत्त्व रखता है, है । कलकत्तेकी सभाने खुले शब्दों में उक्त सभाकी कितनी शुद्ध सम्मतिको लिये पत्रोंके बहिष्कारका प्रस्ताव पास किया हुए है और कितने अनुचित दबाव तथा है और उसका वह प्रस्ताव जो सेठ बेकानूनीके साथ पास कराया गया है। गम्भीरमलजी पण्ड्याके सभापतित्वमें साथ ही, यह भी मालूम कर सकते हैं पास हुआ था, एक अलग कागजपर कि कुछ लोगोंकी हठधरमी और पक्षपात- मोटे अक्षरोंमें छापा हुआ इस समय की मात्रा कितनी बढ़ी हुई है और उसके हमारे सामने मौजूद है। उसके ऊपर एक द्वारा कैसी घृणित कार्रवाई की जाकर श्रोर "पद्मावती पुरवालका क्रोडपत्र, समाजमें व्यर्थका असन्तोष और क्षोभ और दूसरी ओर “इसको मन्दिरजीमें उत्पन्न किया जा रहा है।
लगा दीजिये" छपा है और नीचे समाज
के व्यक्तियोंके नाम उक्त प्रस्ताव पर अमल ३-बहिष्कार नहीं, सूचना।।
करनेके लिए कुछ प्रेरणात्मक वाक्य हैं ।
वह प्रस्ताव इस प्रकार हैब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी, खंडेल- “जैनहितैषी, सत्योदय, जाति-प्रबोवाल महासभाके सभापति श्रीमान् सेठ धक ये तीनों पत्र हमारे परम पूज्य दिगलालचन्दजी सेठीके व्याख्यानके एक म्बर जैनाचार्य और उनके शास्त्रोंको झूठा अंश पर टिप्पणी करते हुए, अपने गत बतलाते हैं; अतः ऐसे उच्छंखल पत्रोंका २३ दिसम्बरके जैनमित्रमें लिखते है- कलकत्तेकी दि० जैनसमाज बहिष्कारका ___ "सफा २६ में आपने चन्द पत्रोंके प्रस्ताव करती है।" बहिस्कारको अनावश्यक बताया है । इस . इससे पाठक समझ सकते हैं कि
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