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विविध विषय।
योग्यतासे किया जाता है। बल्कि जैन- सभासे प्रायः उठ चुकी थी-उसे ख़बर हितैषीके कितने ही लेख तो बड़ी खोजके भी नहीं थी कि नियम-विरुद्ध ऐसा साथ लिखे जाते हैं।" इतने पर भी प्रस्ताव भी सभामें उपस्थित होगा और सब्जेकृ कमेटी में जैनहितैषी आदिके बहि- ज्यादातर वे ही लोग सभामें बैठे हुए थे कारका उक्त प्रस्ताव रक्खा गया। परन्तु जो षड्यंत्रके कारण अपने प्रस्तावके पेश कमेटीने बहुत कुछ ऊहापोहके बाद उसे होनेकी प्रतीक्षा कर रहे थे या वे लोग थे नामंजूर किया और इसलिए वह खुली जो सामाजिक पत्रोंके पढ़ने पढ़ानेसे प्रायः सभामें पेश नहीं हो सकता था। चूँ कि कुछ सम्बन्ध नहीं रखते; इसलिए वोटके उक्त पत्रों को अजैन पत्र करार देने और समय बाब साहबकी तरफ चार पाँच उनका बहिष्कार करनेकी यह सब बात वोट ही हो सके और प्रस्ताव बहुसम्मतिकलकत्तेकी दिगम्बर जैन सभाकी ही से पास कर दिया गया। इन सब बातोंउठाई हुई अथवा ईजाद की हुई थी और का अनुभव हमें उक्त बाबू साहबके एक उसीके सदस्य तथा अनुयायीजन इस पत्रपरसे हुआ है जिसका कुछ अंश हम समय कलकत्तमें इस अधिवेशनके मूविंग अपने पाठकोंके अवलोकनार्थ नीचे उद्एंजिन (Moving engine) बने हुए थे। धृत करते हैंउन्होंने उक्त प्रस्तावके पास न होनेकी "जब सभाका कार्य समाप्त हो चुका हालतमें अपनी नककटी समझी। और तब सभापतिने कहा कि यद्यपि जैनहितैषी इसलिए एक षड्यंत्र रचा गया जिसके आदि पत्रोंके बहिष्कारकी बात Subject द्वारा सभापति साहबको यह धमकी दी. Committee (सब्जेकृ कमेटी) में उठी गई कि यदि यह प्रस्ताव सभामें नहीं थी किन्तु वह बहुसम्मतिसे नापास हो रक्खा जायगा तो वह लोग कोई भी कार्य गई । इस कारण वह प्रस्ताव नहीं रक्खा न करने देंगे और न सभाकी किसी कार्र- गया। किन्तु प्रायः ८० हस्ताक्षरोंका एक वाईको आगे चलने देंगे। इस षड्यंत्रका पत्र सभापतिके पास पहुँचा था जिसमें हाल सभापति साहबकी जबानी उस वक्त कहा गया था कि यदि यह प्रस्ताव न खुला जब कि सभाकी कार्रवाई प्रायः रक्खा जावेगा तो वे लोग कोई कार्य न समाप्त हो चुकी थी, रातके १२ बजे थे करने देंगे। अतः उन लोगोंको आज्ञा दी और करीब दो तिहाई जनता सभासे गई कि अब रात्रिके १२ बजे, जब सभामें उठकर चली गई थी। उस समय सभा- से दो तिहाई लोग चले गये थे, वे अपना पति साहबने, उक्त धमकी और अनुचित प्रस्ताव पेश करें। ऐसे प्रस्तावका विरोध दबावसे प्रेरित होकर और शायद यह करना मेरे लिए परम आवश्यक था और समझकर कि यदि इन लोगोंकी यह बात मैंने प्रेस ऐकृ, औरंगजेबकी असहिष्णुता न मानी गई तो कहीं सब की कराई आदि बातोंका उल्लेखकर उसका विरोध रह न हो जाय, उन लोगोंको इजाजत किया, और अन्त में यह कहा कि इन पत्रोंदी कि वे अपना प्रस्ताव अब पेश करें। पर धर्मके घातक होनेका जो लांछन उक्त प्रस्ताव उसी दम सभामें पेश किया लगाया जाता है वह वृथा है, क्योंकि गया और बाबू निहालकरण जी सेठी जैनधर्मके वास्तविक सिद्धान्तोका विरोध एम. एस. सी. ने उसका जोरोंके साथ कोई कर ही नहीं सकता। सभ्य संसारविरोध किया । चूँकि विचारशील जनता के सामने उनका मूल्य घट नहीं सकता।
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