Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 62
________________ जैनहितैषी। .. [ भाग १५ प्रेसके लिए लिखने व प्रूफ संशोधनका नहीं बन सकता। जो लोग उनपर सन्देह काम जैनशास्त्रीगण करते रहते हैं। पहले करते हैं वे, निःसन्देह, हृदयहीन और पण्डित मनोहरलालजी यह कार्य करतेथे; अनुभव-शून्य हैं, उन्होंने अभीतक प्रेमीजीअब पं० पन्नालालजी सोनी कर रहे हैं। को नहीं पहचाना । नहीं मालूम, हिन्दी यदि ये शास्त्री अनुचित विचार रखते होते जैनगजटके सम्पादककी यह हृदयहीनता तो आपको लिखना था कि इनको बदल- और अनुभव-शून्यता समाजको क्या क्या कर अमुकको रख दो। सम्पादकोंको बहुत हानि पहुँचावेगी। उन्हें इतनी भी समझ समझकर कलम उठानी चाहिए व लेख बूझ न हुई कि ग्रन्थमालामें जो ग्रन्थ प्रसिद्ध करना चाहिए। जैनसमाजमें इने निकलते हैं उन्हें यदि वे स्वयं नहीं पढ़ गिने काम करनेवाले हैं। यदि हम इनसे सकते तो दूसरे कितने विद्वान् पढ़ते हैं काम लेना बन्द करेंगे तो फिर सब ही और कितने खोजी विद्वान् मूल ग्रन्थोकी काम बन्द हो जायँगे। भाई नाथूरामजी अनेक प्रतियों परसे उनकी जाँच किया व ग्रन्थमाला कमेटीको जैनगजटके करते हैं; कोई कुल्हियामें गुड़ नहीं फूटता, लिखनेका खयाल छोडकर अपने दि० वे पबलिकके सामने विचार और जाँचके जैन साहित्यके उद्धारमें डटे रहना लिए रक्खे जाते हैं। ऐसी हालतमें कोई चाहिए।" खास गोलमाल कैसे चल सकता है और हमें ब्रह्मचारीजीके इस नोटसे श्रीयुत किस सहृदय व्यक्तिको उसके करनेकी भाई नाथूरामजी प्रेमीके इस्तीफेका हाल जुरअत हो सकती है। और उसका कारण मालूम करके हिन्दी जैनगजटके सम्पादककी बुद्धिपर बहुत 8-गांधी सिगरेट । ज्यादा अफ़सोस और खेद हुमा । ब्रह्म किसी कारखानेने अपने सिगरेटके चारीजीने उसपर जो कुछ नोट किया है । पैकटोंके ऊपर महात्मा गांधीका चित्र उससे हम प्रायः सहमत हैं; परन्तु उनकी यह बात माननेके लिए बिलकुल तैयार नहीं ' छापकर उसका नाम "महात्मा गांधी हैं कि, प्रेमीजीसे ग्रन्थों में परिवर्तन होना सिगरेट" रक्खा है। इसपर गांधीजीने जो इस वजहसे सम्भव नहीं है कि वे संस्कृत कुछ लिखा है वह "भविष्य के शब्दों में इस प्रकार है-"इससे अधिक जिल्लतकी प्राकृत इतनी नहीं जानते कि परिवर्तन बात और कोई नहीं मालूम होती कि कर सकें। यह बात बिलकुल बच्चोंको सिगरेट के साथ मेरे नामका संयोग किया बहकाने जैसी है। हमारा कहना यह है जाय । मैं सगिरेट पीनेसे उतनी ही घृणा प्रेमीजी योग्यताकी दृष्टिसे-संस्कृत प्राकृतकेशानकी दृष्टिसे-सब कछ परिवर्तन करता हूँ जितनी शराब पीनेसे। तम्बाकू कर सकते हैं, परन्तु उनके आत्मामें पीना मैं बुरा समझता हूँ। इससे आदमीजितना धार्मिक बल मौजूद है, जिस का अन्तःकरण मुरदा हो जाता है। और नैतिक चरित्रके वे व्यक्ति हैं और उनके वह शराब पीनेसे भी इस मानेमें बुरा है मन्दर जितना मनुष्यत्व तथा सत्यनिष्ठा- कि इसका प्रभाव चुपचाप पड़ता है। का भाव पाया जाता है उसकी दृष्टिसे यह एक ऐसी बुरी आदत है कि जहाँ उनके द्वारा ऐसी कूट-लेखकताका कार्य इसने एक दफा आदमीपर अपना कब्जा होना नितान्त असम्भव है और कभी कर लिया कि फिर इससे छूटनामुश्किल हो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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