Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 53
________________ - विविध विषय। दृष्टिसे यह प्रस्ताव बड़े महत्त्वका है । विविध विषय । और, जहाँतक हम समझते हैं, इस विषयका यह पहला ही प्रस्ताव है जो १-बहुविवाह-निषेध । किसी ऐसी बड़ी सभासे पास हुआ हो। इतने बड़े महत्त्वका प्रस्ताव सहज हीमें हाल में दिगम्बर जैन खंडेलवाल महा- पास हो गया हो, ऐसा नहीं है। इसके सभाने, अपने कलकत्तेके अधिवेशनमें पास होने में बड़े जोर लगे हैं और यह प्रस्ताव नं० के द्वारा बाल-विवाहादि बहुत कुछ वादविवादके पश्चात् पास कुरीतियोंका निषेध करते हुए, 'बहुवि- हुआ है, परन्तु अभीतक इसके सम्बन्धमें वाह' का भी निषेध किया है-अर्थात् कोई उल्लेख किसी पत्रमें हमारे देखने में एक स्त्रीके मौजूद होते हुए दूसरा विवाह नहीं आया। अतः आज हम बाबू निहाल. करानेको अनुचित ठहराया है-और करणजी सेठीके पत्र परसे इसका कुछ इसे भी "जातिको अधोदशामें पहुँचाने- परिचय अपने पाठकोको कराते हैंवाली और जातिके गौरवको घटानेवाली जिस समय बालविवाह, वृद्ध विवाह एक कुरीति" प्रतिपादन किया है । यद्यपि और कन्याविक्रय आदिके निषेधका यह यह बात किसीसे छिपी नहीं है कि बहु- प्रस्ताव सभामें उपस्थित किया गया उस विवाहका रिवाज बहुत प्राचीन समयसे समय इसमें 'बहुविवाह' शब्द नहीं थे। चला आता है-जैनियोंके कथा-ग्रन्थ अतः बाबू निहालकरणजी सेठीने खुली और उनके प्रधान पुरुषोंके अधिकांश सभामें यह प्रस्ताव किया कि इसमें 'बहुचरित्र इसके उल्लेखोसे भरे हुए हैं-फिर विवाह' शब्द और शामिल किये जावेभी खंडेलवाल महासभाका ऐसे प्राचीन अर्थात् बहुविवाहका भी बालविवाह, रिवाजके विरुद्ध इतने जोरोंके साथ वृद्धविवाह आदिकी तरह निषेध किया प्रस्ताव पास करना उसके लिये निःस- जाय । इसपर पण्डित धन्नालालजीने न्देह एक बड़े ही साहसका कार्य हुश्रा उक्त संशोधनका विरोध किया, और है। उसने अपने प्रस्तावके इस अंशके न केवल विरोध ही किया बल्कि इतनी द्वारा यह बतला दिया है कि, प्राचीन गड़बड़ मचाई कि उस गड़बड़में आप कालमें यह प्रथा भले ही अच्छी समझी बातको बिलकुल उड़ा देना ही चाहते जाती हो परन्तु आजकलकी दृष्टिसे वह थे। परन्तु इतनी खैर हुई कि जनता अच्छी नहीं है, घातक है-उसके कारण उनसे सहमत नहीं थी । यद्यपि पण्डितखंडेलवाल आति अधोदशाको जा रही जीने बहविवाहकी प्रथाकी शास्त्रोक्त है और उसका गौरव नष्ट हो रहा है। बतलाकर और धर्मकी बहुत कुछ दुहाई साथ ही उसने यह भी सूचित कर दिया देकर, बहुतेरा चाहा कि उनकी बात है कि इस किसमके रीतिरवाज हमेशा मान ली जाय परन्तु वे इस बातका कोई एक रूपमें नहीं रहा करते, वे देश-काला- जवाब न दे सके कि यदि यह प्रथा . नुसार बराबर बदला करते हैं और उन्हें पुराणों में उल्लिखित होनेसे ही मान्य है बदलने की ज़रूरत हुआ करती है; जैसा तो फिर अन्य जातिसे विवाह, म्लेच्छ कि हमने "शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदाहरण" आदिसे विवाह, निकट सम्बन्धियोसेवामके लेखमें ज़ाहिर किया था। इस यथा मामा, काका, आदिकी लड़कीसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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