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जैनहितैषी।
[भाग १५ शिक्षा दीक्षा होनी चाहिए कि जो इनके चाहिए । और जहाँतक हो सके, गृहस्थके जीवनको सदाचारपूर्वक निबाहनेमें पूरी छः कर्म प्रति दिन पालें, तो अच्छा है। सहायता दे। जैनसमाजमें आजकल (४) हम लोगोंमें प्याहशादी जैनअध्यापिकाओंकी बहुत कमी है, और इस विवाह-पद्धतिके अनुकूल अवश्य होना कमीके कारण ही कई जगह कन्या पाठ- चाहिए। शालाएँ नहीं खोली गई हैं । क्या ही अच्छा (५) सोलह-संस्कार भी यथासाध्य हो कि हमारी विधवा बहिनोंको ऐसे किये जायँ, तो अच्छा है। कामोंके लिए तैयार कर उनसे जातिको (६) जातिका कोई बच्चा भूखा और उन्नतिके काम लिये जायँ और पढ़ानेके बेपढ़ा-लिखा न रहे । इसके लिए ज्यादेसे बाद वे अपना शेष जीवन शान ध्यानमें ज्यादे ध्यान देना अत्यन्तसे ज्यादे भावब्बतीत करें।
श्यक है। ____ "मेरी तुच्छ सम्मतिसे यदि हमारी (७) हम लोगोंका खानपान भी बहुत.. विधवा बहिनोंको महात्मा गान्धीजीका शुद्धतापूर्वक शास्त्रानुकूल होना चाहिए। चर्खा या हाथके लूमोंपर कपड़ा बनाना (E) नवयुवकोंमें बीड़ी सिगरेट और सिमाया जाय, तो बहुत उपयोगी हो। अन्य मादक पदार्थों का सेवन रोकनेके इससे इनके लिए एक प्रकारका काम भी लिए उचित आयोजन करना चाहिए हो जायगा और ये दूसरोंके लिए भाररूप क्योंकि इनसे शारीरिक और मानसिक न होकर स्वयं अपने पैरोंपर खड़ी होनेके दोनों प्रकारकी हानियाँ होती हैं। योग्य हो जावेंगी। जैसा कि मैंने अपने __(8) हमारे दिगम्बर जैन समाजमें व्याख्यानमें ऊपर गुप्तदानका जिक्र किया जैसवाल, बागड़िया, अग्रवाल आदि है, वह ज्यादेसे ज्यादे हमारी इन्हीं जितनी बिरादरियाँ हैं, उनके साथ अपनी बहिनोंके काममें आना चाहिए और यही जातीय मर्यादा कायम रखते हुए, उनको उनकी सबसे ज्यादे हकदार हैं । हमारा अपना सहधर्मी भाई समझते हुए उनके फर्ज है कि इस तरह इनके जीवनको साथ भी हमको बहुत सहानुभूतिका सुगम बनाते हुए इनको अपने पुराने बर्ताव करना चाहिए। अन्दरूनी हम लोग मादर्शपर कायम रखते हुए गिरनेसे इस प्रकार जुदे होते हुए भी धार्मिक बचावें। स्त्रियोंको नर्सिंगकी शिक्षा भी कार्यों में तो हमको ऐसे शरीक हो जाना दी जाय, तो वे रोगियोंकी सेवामें बहुत चाहिए कि बाहरवाले भी यह आने कि सहायक होंगी।
हम सारे दिगम्बरी एक समाजमें हैं। अन्तमें सेठजीने निम्नलिखित सूचनाएँ (१०) अपनी जातिका प्राचीन गौरव देकर अपने व्याख्यानको समाप्त किया है- और महत्त्व आदि बतानेके लिए योग्य
(१) क्या स्त्री क्या पुरुष हम सबको पुरुषों द्वारा एक बहुत उत्सम और सर्वाङ्गप्रति दिन जिन भगवान्के दर्शन करने पूर्ण जातिका इतिहास अवश्य तैयार चाहिएँ।
- होना चाहिए । (२) खाध्याय जितना ज्यादेसे ज्यादे . . (११) विधवा-विवाह करना और कर सके, अवश्य करना चाहिए । जाति-व्यवसा आदि तोड़ना क्यों हानि
(३) यथासाध्य प्रति दिन आलोचना कर है और इनकी आवश्यकता क्यों नहीं और सामयिक प्रतिक्रम भी करना है, इत्यादि विषयों पर योग्यता और
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