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जैनहितैषी।
[ भाग १५ मेरा दोनों सम्प्रदायोंके अगुआ महा- है कि उसपर खयाल करते हृदय थर्राता शयोंसे सविनय निवेदन है कि आप लोग है। सचमुच इस फूटने बहुतसे उन्नतोंको अब कोई ऐसा मार्ग निकालिये, जिससे अवनत कर दिया है। आप इस फूटको यह झगड़ा शान्तिपूर्वक जल्दी ही तय हो अपनी जातिमेसे बिलकुल निकाल जावे। अच्छा हो कि यह झगड़ा दोनों दीजिये। हमारे नेताओको चाहिये कि सम्प्रदाओंमें आपसमें तै हो जाय और हमारेआपसके झगड़े अवश्यमेव आपसमें दुनियाँ को हम बता दें कि जैसे हम ही निपाट लें और आगे न बढ़ने दें।" लड़ना जानते हैं, वैसे मिलना भी जानते पंचायतोकी हालत और उनके द्वारा हैं। अगर हम किसी तरह से नहीं कर निर्णयके सम्बन्धमें आपने कहा-“पंचा. सके तो देशके निष्पक्ष नेताओंके हाथमे यतोंमें प्रायः देखा गया है कि पंच लोग यह मामला देकर निपटारा कराना अक्सर किसी मामलेका विचार करते चाहिये। आप देखते हैं कि अदालतोंके हुए पक्षपात, रिश्तेदारी और मान मुलाजज बैरिस्टरों मादिसे देशके कितने ही हिजेको न्याय और सत्यकी अपेक्षा ज्यादे नेताओंकी योग्यता बहुत ऊँचे दरजे की काममें लाते हैं। यह बहुत बुरी बात है, है। और फिर अदालतोंमें हमको लाखों इससे बाज वक्त कई अन्याय और अत्यारुपया स्वाहा करना पड़ता है और यहाँ चार हो जाते हैं और निर्बल पिस जाते सिर्फ प्रार्थना पर ही मामलेका अन्त आ हैं, इसीसे बखेड़े उठते हैं। हमें चाहिये कि सकता है। अगर दोनों सम्प्रदायके भाई पंचायतके फर्शपर बैठकर रेव धर्म और इसपर ध्यान दें तो यह बहुत अच्छा गुरुकी साक्षीले न्यायाधीशका सञ्चा काम तरीका है।
करें। और मनुष्योचित धर्म है कि हम भाइयो! हजारों वर्षोंका हिन्दू मुसल- इसे राजाशाके समान माने । खासकर मानोंका आपसका झगड़ा तै हो गया- हमारे मुखियाओंको तो इसका पूरा पूरा वे एक हो गये; और इस बीसवीं सदीमें ध्यान अवश्य रखना चाहिये तभी वे सच्चे ऐसी न मालूम कितनी असम्भव बातें मुखिया हो सकते हैं। आवश्यकता है। सम्भव हो गई। क्या ऐसे समयमें हम इसलिये ये बातें हमको अवश्यमेव करनी ही ऐसे दुर्भागी रहेंगे जो अपनी शक्ति चाहिये । हमारे त्यागी मुनियोको चाहिये और पैसेको इस तरह आपसके झगड़ेमें कि इसका जगह जगह उपदेश करें और व्यय करेंगे! मैं चाहता हूँ कि यह खंडेल- पंचायत बनाकर जातिका सुधार करें। बाल सभा ही इस वर्षोंके झगड़ेको शान्त जैनियोंकी राजभक्तिका उल्लेख करते हुए करके श्रेय प्राप्त करे। इससे बहुतसा आपने खेदके साथ प्रकट किया किदव्य जो इस झगड़ेके कारण मांसभक्षियों "जैनियोको कौंसिलमें जुदा हक़ न मिलनेकेजेबमें जाता है, रुककर हमारी जातीय से हमारे कई भाइयोंका जी दुखा है । उन्नतिमें लगेगा और समय व शक्तिका मगर अब तो कौंसिलके मोह नहीं रहे । जो बचाव होगा वह अलग।
क्योंकि देशके बहुत लायक आदमी भी साहेबान ! फूट बहुत बुरी चीज है। अब उससे बाहर रहकर ही देशकी सेवा इस फूटसे ही असंख्य घरों, कई गाँवों, करना उपयोगी समझते हैं। समझे क्यों कई प्रान्तों, और कई देशोंका नाश हो नहीं, जबकि आर्थिक स्वराज्य तक हमको गया है और इस बुरी तरहसे नाश हुआ महीं दिया गया, जिसका कि देशके
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