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जैनहितैषी ।
जीता तथा वहाँसे अपनी सेना मगध देशमें लाकर पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया और शुंगराज पुष्यमित्रको पराजित किया, और फिर अपनी नगरीको लौटकर सुन्दर शिखर निर्माण कराये । ऐसे शीघ्रगामी विजयी सेनापतिकी 'तुलना नेपोलियन बोनापार्टसे की जा सकती है। दूसरी बात यह है कि पुष्य मित्र उस समय उत्तर-भारतका सम्राट् था और उसका विशाल साम्राज्य था । ऐसे प्रसिद्ध सम्राट्को पराजित करनेवाले विजेताकी महिमा कितनी अधिक होगी । इस युद्धका परिणाम यह हुआ कि मगधसे कलिंग की महत्ता बढ़ गई । पाण्ड्यराज |
इसी बारहवें वर्ष में सुदूर दक्षिण के पाण्ड्यराजने भी हाथी, घोड़े, मणि, मोती आदि की भेंट खारवेलकी सेवामें भेजी ।
इस प्रकार सम्राट् खारवेल के अधीन या उसकी प्रभुताको स्वीकार करनेवाले साम्राज्यकी सीमा पञ्जाबसे लेकर श्रासामतक और विन्ध्याचलसे लेकर सुदूर पाण्ड्य देशतक थी ।
खारवेलका शासन ।
१६ वर्ष हीकी अवस्था में राज्य-पद प्राप्त करके उसने शास्त्रानुसार अपनी प्रजाको प्रसन्न रक्खा । शिलालेख में उसके किसी प्रकारके अन्यायका वर्णन नहीं पाया जाता। उसके समयमें कलिंगका प्रताप समस्त भारतवर्ष में व्याप्त हो गया था ।
खारवेलने राजधानीको सुन्दर भवसे सुशोभित किया, विशाल राजप्रासाद - बनवाये, प्राचीन मन्दिरोंका जीर्णोद्धार कराया, प्राचीन नन्दराजकी बनवाई नहरको कलिंग नगरी तक पहुँचाया, और फव्वारों तथा तालाबका पुनः संस्कार
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[ भाग १५
कराया, बाग लगवाये और नगरकी चहारदीवारीकी मरम्मत कराई ।
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खारवेल ने राजसूय यज्ञ करके समस्त करोंको क्षमा कर दिया, और पौर तथा जानपद नाम्नी संस्थाओंको अनेक श्रधिकार दिये । राजधानीकी संस्थाको 'पौर' और ग्रामोंकी संस्थाको 'जानपद' कहते थे । वर्तमान समयमें हम इन्हें म्यूनिसि पल और डिस्ट्रिक-बोर्ड के नाम से पुकार सकते हैं।
शिलालेखसे यह साफ़ प्रकट है कि युद्धके साथ साथ कलिंग निवासियोंने शान्तिके सुखका भी पूर्ण भोग किया। संगीत और वाद्यके द्वारा सार्वजनिक मनोरञ्जनका भी प्रबन्ध था । इसके अतिरिक्त युद्धों में प्राप्त धनसे कलिंग-राज्य सम्पत्तिशाली भी खूब रहा होगा । इस प्रकार खारवेल के साम्राज्यमें सुख, सम्पत्ति, वैभव और ऐश्वर्यकी प्रचुर
सामग्री उपस्थित थी ।
सामाजिक दशा ।
इस शिलालेखमें उस समयके भारतवर्षकी सामाजिक दशाका सजीव चित्र विद्यमान है । यह बात ध्यान देने योग्य है कि उस समय कलिंगकी गणना भारतवर्षमें नहीं की जाती थी। लगभग दो शताब्दियोंके अनन्तर भारतवर्षकी सीमा समस्त उत्तर और दक्षिण देशोंतक मानी जाने लगी ।
जैन धर्म |
खारवेल जैनधर्मावलम्बी था, परन्तु वैदिक विधानानुसार उसका महाराज्याभिषेक हुआ और उसने राजसूय यश भी किया । ब्रह्मणों की जातीय संस्थाओंको उसने भूमि प्रदान की । इससे यह भली भाँति स्पष्ट है कि जैनधर्मानुयायी होते हुए प्राचीन राष्ट्रीय नियमोंका पालन
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