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अङ्क ३-४ ] पुरानी बातोंकी खोज।
.. 8 • करनेके लिये उसे पूर्ण स्वतन्त्रता थी। परानी बातोंकी खोज।.. बौद्ध धर्मके अनुसार यह कदापि नहीं हो सकता था। पंक्ति नं०१७ में बतलाया [गतांकसे आगे] गया है कि खारवेल सभी मतोका मान
४-नेमिनिर्वाणके अन्तिम पद्य । करता है । यह उल्लेख इस महान सम्राटकी धार्मिक सहिष्णुताका अच्छा द्योतक जैनसिद्धान्तभवन, श्राराम, संवत् है। सुख, सम्पत्ति और ऐश्वर्य के साथ १७२७ पौष कृष्ण अष्टमी शुक्रवार की लिखी साथ खारवेलके राज्यमें धार्मिक स्वतं- हुई, 'नेमिनिर्वाण' काव्यकी एक प्रति है, न्त्रता भी होनेके कारण, प्रजाको उस जिसके अन्तमें निम्नलिखित दो पद्य पाये समय सोनेमें सुगन्धि मिलती थी। जाते हैं:
जब वह समस्त जैनेतर धर्मों की प्रतिष्ठा भिल्लो विन्ध्यनगे वणिग्वर करता था, तब जैन धर्मकी उन्नति करना गुणश्चेभ्यादिकेतुः सुरः। • तो उसका परम धर्म ही था। शिलालेख के चिन्तायाति खगे महेन्द्र अनुसार उसने पाप और क्षेमकी क्रियाओं- .
सुमना भूपोपरादिर्जितः ॥ .. में प्रवृत्त पापज्ञापकों को भी राज्यकी ओर
सोऽव्यादच्युतनायको से सहायता प्रदान की थी, और सुयोग्य भ्रमणों के निमित्त एकसंघायन भी निर्माण
नरपतिः स्वादि प्रतिष्ठोऽप्यह. . कराया था। .
मिन्द्रो यश्चजयन्तके सुरमगध पर आक्रमण करके वह वहाँ वरो नेमीश्वरः पातुवः ।।८६॥ से कलिंग-जिनकी मूर्तिको भी लौटा अहिच्छत्रपुरोत्पन्न लाया था जिसको नन्दराज कलिंगसे ले - प्राग्वाटकुलशालिनः। गया था। यह भी जैनधर्मकी सेवा थी। छाहडस्य सुतश्चक्रे
शिलालेख खारवेलके शासनके तेरहुवे वर्ष पर समाप्त हो जाता है। उस
. प्रबंधं वाग्भटः कविः ।।८७॥ समय खारवेलकी अवस्था ३७ वर्षकी
ये दोनों पद्य बम्बईके निर्णयसागर थी। परन्तु स्वर्गापुरी ( या मञ्चपुरी) के प्रेस द्वारा सन् १८६६ की छपी हुई प्रतियोंशिलालेखमें यह लिखा है कि इस लेख
में नहीं हैं । जान पड़ता है, जिस हस्तको वर्तमान् सम्राट् खारवेलकी पाट
लिखित प्रतिपरसे उक्त प्रेसने यह प्रन्थ महिषी, (सम्भवतः धृष्टी) ने खुदवाया ।
छापा है, उसमें यह दोनों पद्य नहीं होंगे। है। इस लेखकी भाषा, खंडगिरिवाले
और भी ऐसी अनेक प्रतियाँ हैं जिनमें ये शिलालेखकी भाषासे, ३०-४० वर्ष बाद- पद्य नहीं पाये जाते और यह सब लेखकोंकी मालूम होती है। इसलिये सम्भवतः की कृपाका फल है। वास्तवमें, ये दोनों कमसे कम ६७ वर्षकी आयुतक खारवेल पद्य नेमिनिर्वाणके अन्तिम पद्य मालूम ने अवश्य राज्य किया होगा। और इस
होते हैं। इन पद्योंमेंसे पहला पद्य नेमीप्रकार ईसाके १३० वर्ष पूर्वतक अवश्य श्वरके पूर्वभवोंका स्मरण करते हुए इस महान् सम्राटका राज्यशासन रहा ग्रन्थके उपसंहार और अन्तमङ्गलका होगा।
(अपूर्ण) सूचक है; और दूसरे पद्यमें ग्रन्थकर्ता
कवि वाग्भटने अपना संक्षिप्त परिचय
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