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अङ्क ३-४ ]
अनुसार स्त्रीराज्य पश्चिममें विन्ध्याचल के समीप एक देश था । इन सब प्रमाणपर विचार करनेसे यह ज्ञात होता है कि मूषिक देश पैठान और गोंडवाना के मध्यमें, २० और २२° अक्षांशोंके अन्तर्गत होगा । उसके बाद कोशल देश था ।
हाथीगुफाका शिलालेख ।
राष्ट्रिक और भोजक । सातकर्णि और मूषिकोंपर विजय प्राप्त करके खारवेल पश्चिम में अपनी सेना ले गया । राष्ट्रिकों और भोजकोने सम्राट् - के चरणोंकी वन्दना की - श्रर्थात् उसको स्वामी स्वीकार किया । राष्ट्रिक और भोजक वर्तमान महाराष्ट्र और बरार प्रान्तों में रहते थे । अशोक के शिलालेखोंमें भी उनका उल्लेख है । ऐतरेय ब्राह्मणके अनुसार भोजकोंमें कोई राजा नहीं होता था। खारवेलने अपने राज्यके चौथे वर्ष में, उनके नेताओंके छत्रादिकों को नष्ट कर दिया और उसे इनसे बहुतसी सम्पत्तिकी प्राप्ति हुई ।
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मगधपर आक्रमण । आठवें वर्ष खारवेलने बड़ी दीवारवाले गोरथगिरिपर श्राक्रमण किया और राजगृहको घेर लिया । वहाँका राजा मथुराको चला गया । सम्भव है, उसने कुछ कारणोंसे मथुराको अपना सैनिक केन्द्र बनाना उचित समझा हो । पंक्ति ८ का शेष भाग अभीतक पढ़ा नहीं जा सका। इसलिए राजगृहके इस श्राक्रमणका परिणाम ज्ञात नहीं होता । सम्भव है, राजगृहके राजाके मथुरा चले जानेके कारण खारवेलको उससे युद्ध करनेका अनुकूल अवसर प्राप्त न होनेसे उसने अपनी सेना वहाँसे हटा ली हो, और शायद समुचित सेना प्रस्तुत करनेके हेतु वह फिर अपनी राजधानीको लौट या हो। कुछ भी हो, हवें वर्ष में कोई
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युद्धचर्चा नहीं सुन पड़ती। दसवें वर्ष में सम्राट्ने देश जीतनेकी इच्छासे उत्तरभारतको प्रस्थान किया । परन्तु ग्यारहवें वर्ष में फिर किसी युद्धका उल्लेख नहीं है । बारहवें वर्ष में उसने उत्तरापथके राजाओं में त्रास उत्पन्न किया । और उसके बाद उसी वर्ष वह मगधके निवासियों में भय उत्पन्न करता हुआ, अपनी सेनाको गङ्गा पार ले गया । मगधके राजा 'वृहस्पतिमित्र' पर, जिसको पुष्यमित्र भी कहते हैं, विजय प्राप्त करके खारवेलने 'कलिंग जिन' की मूर्त्तिको उससे छीन लिया और उसे अपने देशमें ले आया । इस मूर्त्तिको नन्दराज कलिंगसे ले गया था ।
मगधका यह आक्रमण खास तौर से उल्लेखनीय है । उत्तरापथ (सीमान्त प्रदेश ) में विजय प्राप्त करनेके अनन्तर उसने मगध राज्य में प्रवेश किया। इससे यह पता चलता है कि मगध राज्यका विस्तार उस समय सीमान्त प्रदेशोंतक था । पातञ्जलिके अनुसार शक और यवन श्राय्र्यावर्तसे बाहर निकाल दिये गये थे । पुष्यमित्र के अधीन शुंग राज्यकी सीमा पञ्जाब से लेकर कमसे कम अंग (आसाम) तक रही होगी, क्योंकि शिलालेखमें श्रंगकी अमूल्य वस्तुओंके लाने की भी बात है । खारवेलने उत्तर-पश्चिमकी श्रोरसे गङ्गा पार करके राजगृहपर आक्रमण किया होगा, और ऐसा करनेमें उसे दो सुविधाएँ थीं । एक तो सोमकी और पाटलिपुत्र बहुत सुरक्षित है; दूसरे उस और दलदल भी पड़ते हैं, जिनमें हाथियोंका ले जाना कठिन हो जाता ।
मगधके इस श्राक्रमणमै दो बातें विशेष ध्यान देने योग्य हैं। एक तो यह कि, एक ही वर्ष के भीतर खारवेलने कलिंग नगरीसे प्रस्थान करके सीमान्त प्रदेशोंको
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