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अङ्क १-२ ]
जैन सिद्धान्तभवन, श्रशका निरीक्षणं ।
अष्टादश लिप्यः ॥”
द्राविडी,
इनसे अठारह लिपियोंके १ हंस लिपि, २ भूतलिपि, ३ यक्षी, ४ राक्षसी ५ ऊही ( उडिया ? ), ६ यवनानी ( यूनानी), ७ तुरुकी, = कीरी (काश्मीरी), १० सिंघवी, ११ मालविणी, १२ नडि (कनड़ी ? ), १३ देवनागरी, १४ लाडलिपि (लाटी), १५ पारसी (फ़ारसी), १६ अमात्रिक लिपि, ६० चाणक्यी ( गुप्तलिपि ), और १८ मूलदेवी, ( ब्राह्मी ? ) ये नाम पाए जाते हैं । इनमें से अनेक लिपियोंका विशेष परिचय मालूम करने और उनके उदय-अस्त को जानने की ज़रूरत है । ( क्रमशः )
जैन सिद्धान्तभवन, आराका निरीक्षण |
बहुत दिनों से हमारी इच्छा आराके जैन सिद्धान्त भवनको देखने और उसके प्राचीन ग्रन्थों तथा इतर ग्रन्थसंग्रह परसे कुछ अनुसंधान करनेकी थी। भवनमें किसी कनड़ी विद्वान्के न होनेके कारण यह इच्छा अभी तक पूरी नहीं हो सकी थी । अनेक बार इस बातकी कोशिश की गई कि भवन में कोई कनड़ीका विद्वान् बुलाया जाय परन्तु सफलता नहीं हुई । भवन से जो सूची एक लम्बे चौड़े समयकी प्रतीक्षा और बहुतसी उच्च आशाओंके बाद, गतवर्ष प्रकाशित हुई थी वह इतनी अव्यवस्थित, अधूरी और भ्रमपूर्ण पाई गई कि उसकी प्रायः किसी भी बात पर सहसा विश्वास करनेके लिये हृदय तय्यार नहीं होता था। कई बार, जैनहितैषीमें, सूचीसम्बन्धी कुछ बातों पर मोट करनेकी ज़रूरत पड़ी और भवनके मन्त्री साहबसे उनका समाधान तथा
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स्पष्टीकरण माँगा गया । परन्तु वे ऐसा करने में पूर्णरूप से असमर्थ रहे और अन्तमें उन्हें यही लिखना पड़ा कि हमारे पास कोई कनड़ी जाननेवाला विद्वान् नहीं है, इसलिये हम आपकी अभीष्ट बार्तोका उत्तर देने में असमर्थ हैं । इन सब बातोंने भवनमें एक कनड़ी विद्वान् के जल्द बुलाये जानेकी ज़रूरतका और भी अधिकताके साथ उपस्थित कर दिया । देहलीमें, एक प्रसंग पर, हमारा स्वर्गीय बाबू देवकुमारजी बाबू निर्मल कुमारजीके सुपुत्रसे मिलना हुआ । उस समय हमने आपसे एक कनड़ी विद्वान के बुलानेकी प्रेरणा करते हुए यह भी कहा कि यदि फ़िलहाल 'वेतन पर कोई ऐसा विद्वान् न श्रा सके तो कमसे कम श्रीमान् नेभिसागरजी वर्णीका चातुर्मास श्रारामें कराइये जिससे हम उनके साथमें रहकर सूचीका कुछ संशोधन करा सकें । इसपर भाई निर्मलकुमारजीने वर्गीजीको लिखा और वर्णीजीके अनुग्रहसे, सौभाग्यवश, पं०. शांतिराजय्या नामके एक सुयोग्य विद्वान्की भवनको प्राप्ति हो गई, जो कि कनड़ी और संस्कृतके साथ साथ ख़ासी हिन्दी भी जानते हैं। पंडितजीके भवनमें पहुँच जाने पर उन्हें काम के लिये पहले कुछ सूचनाएँदी गई, उसके बाद ५ सितम्बरको सरसावासे चलकर = सितम्बर सन् १९२० को हम श्रारा पहुँच गये । ३१ अक्टूबर तक वहाँ रहना हुआ - अर्थात्, महीना २२ दिन भवनमें ठहर कर हमने उसका निरीक्षणादि कार्य किया और साथ ही अनेक विषयोंका अनुसन्धान भी किया जिसका परिचय समय समय पर हितैषीके पाठकोंको दिया जायगा ।
एक
यह भवन श्रीमन्दिरजीके एक बग़ली कमरेमें स्थापित है। इसमें प्रवेश करते ही सबसे पहली दृष्टि भवनके संस्थापक
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