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भङ्क १-२]
पुस्तक-परिचय। ५प्रात्मपदार्थ, ६ खावलम्बन, ७ आत्म- है कि प्रचारकी गरजसे ऐसा किया गया गुण, : धनदशादर्शन, स्वदेशसेवा, १० हो, और इसलिए,प्रकाशकका यह उत्साह त्रियोंमें उपविधा, ११ मनुष्य-जन्मकी और भी प्रशंसनीय है। दुर्लभता और शानकी योग्यता, १२ समय- ३ भारतके प्राचीन राजवंशको उपयोगिता, १३ शिक्षा, १४ प्राचीन (प्रथम भाग)-लेखक, साहित्याचार्य प्रादर्श महिलाएँ, १५ स्त्री समाजमें समा- पण्डित विश्वेश्वरनाथ रेउ,सुपरिएटेण्डेण्ट चारपत्रोंकी आवश्यकता और १६ कन्या- 'सरदार म्यूजियम' और 'सुमेर पब्लिक महाविद्यालय नामके सोलह निबन्ध हैं। लायब्रेरी' जोधपुर । प्रकाशक, हिन्दी यद्यपि सभी निबन्ध अच्छे, प्रौढ़ और प्रन्थरत्नाकर कार्यालय, गिरगाँव-बम्बई । उच्च विचारोंसे भरे हुए हैं तो भी उनमें पृष्ठसंख्या, नकशों तथा वंशवृक्षोंसे अलब, मानव हृदय, खदेश सेवा और आत्म- ३६० मूल्य, कपड़ेकी जिल्द सहित तीन सम्बन्धी कुछ निबन्ध ऐसे हैं जो खास रुपये। तौरसे पढ़े जाने योग्य हैं; और इन यह पुस्तक अभी हालमें प्रकाशित हुई निबन्धोंसे स्त्रीजाति ही नहीं बल्कि पुरुष है और अपने ढङ्गकी पहली पुस्तक है। भी बहुत कुछ लाभ उठा सकते हैं। पुस्तक- इसमें संस्कृत पुस्तकों, शिलालेखो, ताम्रकी भाषा शुद्ध, परिमार्जित और लेखन- पत्रों, सिक्कों, ख्यातों और फारसी तवाशैली अभिनन्दनीय है। साथ ही प्रकाशक रीखों आदिके आधार पर १ क्षत्रप,२ हैहय, महाशयने इसे बढ़िया कागज पर, उत्तम ३ परमार, ४ पाल, ५ सेन और ६ चौहान टाइपमें और अच्छे ढङ्गसे छपवा-बँधवा- इन छः वंशोके राजाओं तथा इनसे कुछ कर इसकी शोभाको और भी ज्यादा बढ़ा सम्बन्ध रखनेवाले कुछ दूसरे राजाओं दिया है । हमें इस पुस्तकको देखकर और इतर विद्वानों श्रादिका संक्षिप्त इतिबहुत प्रसन्नता हुई। एक स्त्रीकी कलमसे हास तथा परिचय दिया है। इस तरह हिन्दीमें ऐसी अच्छी पुस्तकका लिखा यह पुस्तक सैकड़ो ऐतिहासिक व्यक्तियोजाना, निःसन्देह जैनसमाजके लिये बड़े के संक्षिप्त परिचय और बहुत सी पुरानी गौरवकी बात है। हमारे खयालमें यदि घटनाओंके उल्लेखको लिये हुए है। अनेक श्रीमतीका यह प्रयत्न बराबर जारी रहा नकशों, वंशवृक्षों और फुटनोटोंके द्वारा तो इसके द्वारा वे जैन स्त्रीसमाजका मुख इसे उपयोगी बनाया गया है। इसमें लिखी ही उज्वल नहीं कर सकेंगी, बल्कि देश मुंशी देवीप्रसादजी, सहकारी अध्यक्ष और समाजके उत्थानमें बहुत कुछ सहा- 'इतिहास कार्यालय जोधपुरकी लिखी हुई यक भी बन सकेंगी और हिन्दी संसार २६ पेजकी भूमिका भी बहुत कुछ उपआपकी कृतियोंसे उपकृत होगा। पुस्तक योगी है। इसमें सन्देह नहीं कि, पुस्तक
सबके पढ़ने और संग्रह किये जानेके बड़े परिश्रम और खोजके साथ लिखी - योग्य है।मूल्य लागत मात्र अथवा लागत- गई है और उसमें बहुतसे देशी-विदेशी से भी कुछ कम जान पड़ता है; सम्भव ग्रन्थोका सार खींचा गया है। ऐसी एक
पुस्तककी हिन्दी संसारको बड़ी ज़रूरत * इनके सिवाय, प्रकाशक द्वारा, एक लेख महात्मा
थी। इसके लिए लेखक और प्रकाशक गांधीका 'नवजीवन' से अनुवाद रूप उद्धृत किया गया है. और एक कविता गिरीशके 'रसाल वन' से उठाकर दाना हा धन्यवादक पात्र है। प्रत्येक रक्खी गई है।
इतिहासप्रेमी और पुरानी बातोंके जानने
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