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- जैनहितैषी।
[भाग १५ परन्तु यह लेखकोंकी कृपका फल है कि तेनेषा कविचक्रिणा विरचिता वह किसी प्रतिमें पाई जाती है और
___ श्रीपंचमीसत्कथा । किसीमें नहीं ! 'भैरवपद्मावतीकल्प' नामका ग्रन्थ भी हमें उक्त भवनमें प्रशस्ति- .
___ भव्यानां दुरितोषनाशनकरी सहित उपलब्ध हुआ है और 'ज्वालिनी
संसारविच्छेदिनी ॥५॥ कल्प' नामके ग्रन्थकी प्रशस्ति हमारे स्पष्टं श्रीकविचक्रवर्तिगणिना पास पहलेसे मौजूद थी, जोकि सेठ भव्याजघौशुना, माणिकचन्दजी बम्बईके 'प्रशस्तिसंग्रह' ग्रन्थी पंचशती मया विरचिता नामके रजिस्टर परसे उतारी गई थी।
विद्वजनानां प्रिया । इन तीनों प्रशस्तियोंके आधार पर प्राज
तां भक्तया विलिखंति चारुवचनहम श्रीमल्लिषणाचार्यका कुछ विशेष परिचय देने और उक्त बातोंका निर्णय
क्वर्ण्ययंत्यादरात्, करनेके लिये समर्थ हुए हैं।
ये शृण्वंति मुदा सदा सहृदयानागकुमार काव्यकी वह प्रशस्ति इस
स्तेयांति मुक्तिश्रियं ॥६॥". प्रकार है
___ इस प्रशस्तिसे मालूम होता है कि,
कषायविजयी, गुणोंके समुद्र, नियत "नितकषायरिपुग्णवारिधि
रूपसे चारुचरित्रका प्राचरण करनेवाले, नियतचारुचरित्रतपोनिधिः।
तपोनिधि ऐसे 'अजितसेन' नामके एक जयतु भूपति (कि) रीटविट्टित
मुनीश्वर हो गये हैं जिनके चरणोंको क्रमयुगोजिन (त) सेनमुनीश्वरः॥१॥ राजाओंके मुकुट छूते थे। इन अजितसेन अनि तस्य मुनेवरदीक्षितो
मुनिराजके प्रधान शिष्य 'कनकसेन' मुनि विगतमानमदोदुरितान्तकः ।
थे, जिन्हें विगतमानमद, दुरितांतक, वरकनकसेनमुनिर्मुनिपुंगवो.
चरित्र, महाव्रतपालक और मुनिपुंगव
लिखा है । महामुनि कनकसेनके सम्पूर्ण वरचरित्रमहाव्रतपालकः ॥२॥
शिष्यों में मुख्य शिष्यं 'जिनसेन' मुनि थे, (मि) तमदोऽजनि तस्य महामुनेः
जिन्हें जितमद, हतमन्मथ और भवमहोप्रथितवान् जिनसेनमुनीश्वरः । दधितारतरंडक विशेषणोंके साथ स्मरण सकलशिष्यवरो हतमन्मयो
किया है। इन जिनसेनं मुनिके छोटे भाईभवमहोदधितारतर (ड) कः॥३॥
का नाम नरेन्द्रसेन था। ये नरेन्द्रसेन चारुतस्यानुनश्चारुचरित्रवृतिः
चरित्रवृत्ति थे, पुण्यमूर्ति थे, विशातप्रख्यातकीर्ति वि धुण्यमूर्तिः ।
तत्त्व थे, जितकामसूत्र थे, इन्होंने वादियोंमरेन्द्रनो जितवादिसेनो
के समूहको जीता था और पृथ्वीपर विशाततत्त्वो जितकामसूत्रः ॥४॥
इनका यश विख्यात था और उनके शिष्य
का नाम श्रीमल्लिषेण था । मल्लिषण तच्छिष्यो विबुधारणागुणनिधिः
विबुधोंमें अग्रगण्य, गुणनिधि, सम्पूर्णभीमलिषणाहयः।
शास्त्रोंमें निपुण, वाग्देवता .(सरखती)से संजातः सकलागमेषु निपुणो
अलंकृत, भव्यकमलोके सूर्य और कवियाग्देवताकृतः॥
चक्रवर्ती थे। उन्हीं मलिषेण गणिने पाप
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