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अंङ्क १-२ ] जैनधर्मका महत्त्व।
४५ जाय अथवा अपराध करनेके वास्ते ही मिलना माननेकी अवस्थामें, हमारे हिन्दू बाध्य हो जाय । इसलिये जो बच्चे ठगोंके भाइयोंसे नहीं दिया जा सकता; एक घर पैदा होकर ठगीकी शिक्षा पाते हैं मात्र जैनधर्मकी ही यह महत्ता है कि और ठग बन जाते हैं, जो कन्याएँ वेश्या- उस पर इस प्रकारका कोई आक्षेप ही ओंके यहाँ जन्म लेकर व्यभिचारकी नहीं हो सकता, क्योंकि जैनधर्म न्यायाशिक्षा पाती हैं और व्यभिचारिणी बन धीशके समान ईश्वरको न्यायकर्ता मानजाती हैं, जो बच्चे अधर्मियों तथा पापियों- कर उसके द्वारा दण्ड और इनामका विधान के यहाँ पैदा होकर अधर्म और पापके होना नहीं मानता, किन्तु प्रकृत रीतिसे काम करने लग जाते हैं, मुसलमान और वस्तुस्वभावके अनुसार ही प्रत्येक कारणईसाइयोंके यहाँ जन्म लेकर मुसलमान से उसके अनुरूप कार्यका हो जाना तथा ईसाई बन जाते हैं और हिन्दूधर्मके बताता है। उदाहरणके लिये यदि हम विरुद्ध कार्योंको भी धर्म मानने लग जाते अागमें उँगली देते हैं तो वह जल जाती हैं, जैनीके घर पैदा होकर जगत्कर्ता है, इसमें किसी न्यायाधीशके सामने ईश्वरके अस्तित्वसे भी इनकार करने लरा मुक़दमा पेश होने और वहाँसे उँगलीके जाते हैं; इसी प्रकार शेर, चीते और जलाये जानेकी आज्ञा निकलनेकी श्रावभेड़िये आदि वे पशु जो मांसके सिवाय श्यकता नहीं होती। किन्तु अागका स्वभाव और कुछ भी नहीं खा सकते और अपनी ही जलानेका है, इस कारण जब कभी सारी उमर घोर हिंसामें ही बिता जाते हमारी उँगली आगसे भिड़ जाती है तब हैं, उन सबकी बाबत यह कैसे मान लिया वह जल जाती है। यहाँ तक कि यदि कोई जाय कि किसी न्यायकारी बुद्धिमान् हमारी इच्छाके विरुद्ध ज़बरदस्ती भी ईश्वरने उनके पिछले जन्मके कर्मोंके दण्ड- हमारी उँगली आगके अन्दर कर दे स्वरूप ही उनकी यह दशा बनाई है, जिसमें हमारा कुछ भी दोष नहीं होता है दण्डस्वरूप ही अपराध करनेकी उन्हें तब भी वह आग हमारी उँगलीको जला शिक्षा दिलाई है, दण्डस्वरूप ही अपराध देती है क्योंकि आगको कोई न्याय करना करनेकी उनकी आदत बनाई है अथवा नहीं होता, उसे तो अपने स्वभावानुसार प्रकृति ठहराई है। इससे तो यही नतीजा जलानेका ही काम करते रहना होता है। निकलता है कि न तो कोई पिछला जन्म इसी लिये यदि किसी स्थान पर आग है और न कोई उस जन्मके कर्म हैं जिनके हो और उस पर राख होनेके कारण. फलस्वरूप जीवोंकी यह दशा बनाई गई हमको यह बात मालूम न हो और हो; किन्तु यहां जान पड़ता है कि सर्व- हम अनजानमें वहाँ हाथ दे दें तो भी शक्तिमान् ईश्वरने जीवोंके पहले कर्मोंके हमारा हाथ जल जायगा। अर्थात् वह बगैर ही अपने इच्छानुसार किसीकी आग हमारी जानकारी वा अनजानपन कुछ अवस्था बना दी है और किसीकी आदिका कुछ भी विचार न करेगी और कुछ, और इस तरह इस संसारकी अपने स्वभावानुसार जलानेका कार्य कर. विचित्ररूप रचना करके दिखाई है। डालेगी। यदि किसीका कोई वैरी उसके - मुसलमानों और ईसाइयोंके इन मकानमें आग लगा देता है या हवाकी आक्षेपोका कुछ भी समुचित उत्तर, ईश्वर- तेज़ीके कारण प्रागका कोई कण उड़कर को कर्ता मानकर उसके द्वारा कर्मफल किसीके मकान पर आ पड़ता है. तो भी.
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