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जैनहितैषी।
[भाग १५ वह आग सारे मकानको भस्मीभूत कर कारी बुद्धिमान ईश्वर ही हमको यह सब देती है और यह नहीं बताती कि उसके कष्ट पहुँचानेवाला और हमारे शरीर में किस अपराधके कारण उसकी यह दशा रोगोंको उत्पन्न करनेवाला होता तब तो बनाई गई है; क्योंकि वह आग तो न्याया- बेशक उसको यह बता देना ज़रूरी होता -धीश बनकर दण्डस्वरूप उसका मकान कि तुम्हारे अमुक अपराधके कारण ही नहीं जलाती किन्तु पूँकना और जलाना तुमको यह कष्ट दिया गया है, और ऐसी ही अपना स्वभाव होनेके कारण उन सब दशामें हमारा ओषधि करना भी बिलकुल वस्तुओको फूंक डालती है जो उससे व्यर्थ ही होता । परन्तु ये शारीरिक कष्ट भिड़ जाती हैं और जो श्रागसे जल तो प्रतिकूल पदार्थों के ही मेलसे पैदा सकती हैं।
__ होते हैं जो सब अपने अपने स्वभावानु___यदि हम कोई ऐसी वस्तु खा लेते हैं सार कार्य करते हैं और हमारे शरीरके जिसको हम हज़म नहीं कर सकते तो परमाणुओंसे मिलकर हमको कष्ट पहुँहमारे पेटमें दर्द होने लग जाता है और चाते हैं। इसलिये ओषधियोंके द्वारा इन पाचन ओषधि खा लेनेसे वह दर्द दूर प्रतिकूल पदाथाको दूर कर देनेसे रोग हो जाता है। और भी अनेक प्रकारकी भी दूर हो जाते हैं और इन प्रतिकूल बीमारियाँ हमारे शरीरकी अवस्थाके प्रति- पदार्थीको, कष्ट देते समय, यह बताना कूल पदार्थोके मिलनेसे वा कम बढ़ती भी नहीं पड़ता कि मनुष्य अथवा पशुको पदार्थों के मिलनेसे उत्पन्न हो जाया करती उसके अमुक अपराधके कारण ही यह हैं और ओषधिके द्वारा उन प्रतिकूल कष्ट दिया जा रहा है। पदार्थोंको हटा देनेसे वा कमीको पूरा स्वभावानुसार एक पदार्थका दूसरे कर देनेसे दूर हो जाया करती हैं। वे पदार्थों पर असर पड़नेके कारण उन प्रतिकूल पदार्थ हमारे शरीरमें घुसकर पदार्थों को यह भी देखना नहीं होता कि नाना प्रकारके रोग तो उत्पन्न कर दिया जिस पदार्थ पर मैं असर डाल रहा करते हैं और अनेक प्रकारके कष्ट भी देने हूँ, मेरे असर डालनेसे उसकी वृद्धि होगी लग जाते हैं परन्तु यह नहीं बताया करते या हानि, वह बिगड़ेगा या सुधरेगा, कि तुम्हारे अमुक अपराधके कारण ही सीधे मार्ग पर चलने लग जायगा या हम तुमको यह कष्ट दे रहे हैं, बल्कि उलटे पर। संसारके पदार्थों को इन बातोकभी कभी तो ये प्रतिकूल पदार्थ इस से क्या मतलब ? वे कोई जगत्कर्ता प्रकार चुपके ही चुपके हमारे शरीरमें ईश्वर, हाकिम या न्यायधीश तो हैं ही नहीं घुस जाते हैं कि हमको पता भी नहीं जो उनको इन बातोंके विचारने की ज़रू-. होता कि कब कौन प्रतिकूल पदार्थ घुस रत हो। वे तो बेचारे अपने स्वभावानुसार गया और किस प्रतिकूल पदार्थने हमको काम करते हैं और इस बातके ज़रा भी पीड़ा देना शुरू कर दिया है और वह ज़िम्मेदार नहीं होते कि उनसे किसीको किस तरह निकाला जा सकता है । इसी हानि होगी या लाभ । उदाहरणके लिये कारण हम वैद्यों और डाकृरोसे अपने यदि कोई पुरुष शराब पीकर उन्मत्त हो शरीरकी परीक्षा कराया करते हैं और जाय और अधिक अधिक तेज शराब माँगने उनके द्वारा अपने रोगका कारण मालूम लग जाय तो शराब पर यह दोष नहीं लंग करना चाहते हैं । यदि कोई न्याय- सकता कि तूने उसकी दशा ऐसी क्यों
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