________________
दुखी जनोंकी सहायता करनेका होता है। यह विद्यार्थी सहयी उपाय करता है कि यह वोश उसपरसे उठा लिया जाये। आजीविकाकी चिन्ताका बहाना भी करता है; परन्तु अच्छी तरह जानता है कि कैसा ही परिश्रम मनुष्य करता हो फिर भी उसको सदा समय मिन्ट सकता है कि अपनी उन्नतिके साथ साथ परोन्नतिके लिए भी थोड़ा थोडा समय व्यय करे। वह परिश्रमसे जी चुराता है और शिक्षाकी कठिनाइयों के सम्मुख कायरतासे सिर झुका देता है । जब रतते कहा जाता है कि उस आशाको पूरी क्यों नहीं करता जो उसके विषयमें की गई थी तो यद्यपि वह मनमें अच्छी तरह जानता है कि मेने असली शिक्षा नहीं पाई किन्तु अपनी अज्ञानतासे इन सब आशाओं व विचारोको व्यर्थ समझकर वैसा ही निरुद्देश जीवन व्यतीत करता है जिसके सुधारके लिए ही शिक्षा प्रारम्भ की गई थी। वह किसी भाषाके बुरा भला लिखने पढ़ने अथवा कतिपय सर्टीफिकटोंकी प्राप्तिसे शिक्षाकी इतिश्री मानता है और सदा यह उद्योग करता है कि जिस तरह हो परिश्रम करके लोगोको यह धोखा दे कि मेरी योग्यता बहुत बढ़ी चढ़ी हुई है। उसके आगे और पीछे कर्तव्य हैं। यही कर्तव्य उसके दाएँ बाएँ हैं। हर तरफसे वह जकड़ा हुआ है किन्तु वह अपने आवश्यकीय कामोंको भूलना चाहता है और अपनी जजीके तोडनेकी चिन्तामें रहता है। अन्तमें इसी गडबड़मे वह अज्ञानता और अपमानके भयंकर भँवरमे गिर पडता है। उस समय उसको पशवत स्वतंत्रता प्राप्त हो जाती है अर्थात् वह अज्ञानताके बंधनमें पड़ जाता है। परन्तु मानवीय स्वतन्त्रता-जिसके अर्थ अपने आपको वश करना, जीवनके कर्तव्योंका पालन करना और सदा आगे बढ़े जाना है-उसमेंसे नष्ट हो जाती है।