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एक सीढ़ीके समान है जिसपर वह प्रति दिन चढ़ता है । अतएव जो मनुष्य इस सीढ़ी पर नहीं चढ़ता वह विद्यार्थी नहीं है। कभी कभी विद्यार्थियोंको यह बाधा भी होती है कि जो लोग उनकी दशाके निरीक्षक और उनकी शिक्षाके उत्तरदाता है वे ऐसी बातोंको पसद करते है जिनसे विद्याका वास्तविक तात्पर्य नहीं निकलता । वे उन . वातोंको नापसंद करते है जिनसे विद्यार्थियों में असली योग्यता प्राप्त होती है। ऐसी दशामे यह काम अत्यन्त दृढता और वीरताका है कि मनुष्य अपने विचारों पर स्थिर रहे । उसे चाहिए कि अपनी सम्मतिको दूसरोकी इच्छाके आधीन न करे और जो बात उसने अच्छी तरह विचार कर स्थिर कर ली है उसे अपनेसे वडे आदमियोको खुश करनेके लिए त्याग न करे। पहले कहा है कि विद्यार्थी उस समय तक उन्नति नहीं कर सकता जब तक उसमें विचारशक्ति और गम्भीरता पैदा न हो । जीवनके वर्तमान अभ्यास मनुष्यके शेष जीवन पर बडा प्रभाव डालते हैं। यदि विद्यार्थीकी दृष्टि दीर्घ और विचार उच्च न हों तो वह भी लाखों मनुष्यों के समान पशुवत् जीवन व्यतीत करेगा और शिक्षासे उसके जीवन पर कुछ प्रभाव न पड़ेगा; बल्कि यह कहना चाहिए कि वह शिक्षासे वचित रहेगा। हम पूर्वमें कह आए है कि वास्तवमें विद्याका यह अभिप्राय है कि मनुष्य इस वातको भली भॉति समझ ले कि मुझे किस प्रकार अपना जीवन व्यतीत करना है। उन तमाम कठिनाइयोंके सामना करनेकी शक्ति उसमें पैदा होनी चाहिए जो प्रत्येक मनु
के सामने हैं। जो सम्बन्ध उसको अपने कुटुम्बियों सम्बन्धियों, जाति या पड़ोसियोंसे है उसकी पूर्तिमें यदि उसे सफलता न हुई अर्थात स्वार्थ अथवा अज्ञानताके कारण यदि वह अपने कर्तव्यका पालन न
का तो उसकी शिक्षा अपूर्ण है, वह असभ्य है और उसका