Book Title: Jain Granth Sangraha
Author(s): Nandkishor Sandheliya
Publisher: Jain Granth Bhandar Jabalpur

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Page 8
________________ - . [ ४] नं. नाम पृष्ठ न. नाम पृष्ठ ११८, पूजा का महात्म्य ३०० १२२, जिनवाणीकीस्तुति ३०६ १६६, रसिया ... ३०० १२३, भोजनोंकीमार्थनाएं ३०७ १२०, विनतीभूदरंदासकृत ३०१ १२४, मिथ्यातका फल ३०८ १२६, दश धर्म के भजन ३०१ ॐनमः सिद्धभ्यः। ॐकार विन्दुसंयुकं नित्यं ध्यायति योगिनः। कामर्द मेक्षिदं चैव काराय नमो नमः ॥१॥ अविरलशब्दधनौघप्रक्षालितसकलभूतलकलंका। मुनिभिरूपासिततीर्या सरस्वती हरतु नो दुरितम् ॥ अज्ञानतिमिरांधानां ज्ञानांजनशलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥३॥ परमगुरुवे नमः परम्पराचार्यश्रीगुरुवे नमः। सकलकलुपविध्वंसक श्रेयसां परिवई के धर्मसंवन्धकं भव्यजीवमनःप्रतिवोधकारकमिदं शास्त्र श्री नाम धेयं......(अन्य का नाम लेवे) एतन्मूलग्रंथकतार श्रीलर्वदेवास्तदुत्तरग्रंथकर्तारः श्रीगणधरदेवास्तेषां बचानुसारतामा. साध श्री......(ग्रन्यकर्ता का नाम लेवे) विरचितम् । मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमो गणी । मंगलं कुदकुंदाचो जैनधर्मोस्तु मंगलम् ॥ धकरः श्रोतारश्च सावधानतया शृपवन्तु ॥

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