Book Title: Jain Granth Sangraha
Author(s): Nandkishor Sandheliya
Publisher: Jain Granth Bhandar Jabalpur

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Page 37
________________ जैन-ग्रन्थ-संग्रह। ॐ हीं अष्टविधसम्यग्शानाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥ जलकेसर धनसार, ताप हर शीतल करै । सम्यकशा०॥२॥ ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यगशनाय चन्दन निर्वपामोति स्याहा ॥२॥ अछत अनूप निहार, दारिद नाशे सुख भरे। सम्यकशा० ॥३॥ ॐ ही अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय अक्षतनिर्वपामीति स्वाहा ॥३॥ पहुपसुवाल उंदार, खेद हरै मन शुचि कर । सम्यकज्ञा० ॥४॥ ॐहीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय पुष्प निर्वपामीति स्वाहा ४॥ नेवज विविध प्रकार, छुधा हरै थिरता कर । सम्यकशा० ॥५॥ ॐ हीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय नैवेद्य निर्वपामोति स्वाहा ॥५॥ दीपज्योतितमहार, घटपट परकाशे महां । सम्यकक्षा० ॥६॥ ॐ ही अष्टविधसग्यकशानाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥ धूप घानसुखकार, रोग विघन जड़ता हरे। सम्यकशा० ॥७॥ ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७॥ श्रीफल आदि विधार,निहवे सुरशिवफल करे। सम्यकशाoilet ॐ ह्रीं अष्टविधसम्यग्ज्ञानाय फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥८॥ जल गन्धाक्षत चारु,दीप धूप फल फूल चरु सम्यकक्षा 10 ॐही अष्टविधसम्यग्हानाय अध्ये निवपामीति स्वाहा ॥ अथ जयमाला। दोहा। आप आप जानै नियत, ग्रंथपठन व्योहार। संशय विभ्रम मोह विन, अर्थग गुनकार ॥१॥ चौपाई मिश्रित गीता छन्द। सम्यकज्ञानरतन मन भाया। आगम तीजा नैन बताया। अक्षर शुद्ध अरथ पहिचानौ | अक्षर अरथ उभय सँग जानी । जानौं सुकालपठन जिनागम, नाम गुरुन छिपाइये।

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