Book Title: Jain Granth Sangraha
Author(s): Nandkishor Sandheliya
Publisher: Jain Granth Bhandar Jabalpur
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जैन-अन्य-संग्रह।
कातिक श्याम अमावस शिवतियं, पावापुर₹ वरना । गनफ-.. निवृद जजै तित पहु विधि मैं पूजभवहरनामोहिराखौ०॥५॥
ॐ ह्रीं कार्तिक कृष्णामावास्यायां मोक्षमङ्गलमंडिताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥५॥ . .
अथ जयमाला । छंदहरिगीता ( २८ मात्रा) गनधर असनिधर चक्रधर, हरघर गदाधर वरवदा । अरु चापधर विद्यासुधर, तिरसूलधर सेवहिं सदा ॥ दुखहरन आनंदभरनं तारन, तरन चरन रसाल हैं।. .. सुकुमाल गुन मणिमाल उन्नत, भालकी जयमाल हैं ॥१॥ .
छंद धत्तानंद (२१ मात्रा). जय त्रिशलानंदन हरिकृतवंदन, जगदानंदनचंद वरं। .. . भवतापनिकंदन तनमनवंदन, रहितसपंदन नयन धरं ॥२॥
छंद तोटक। जय केवलभानुकलासदनं । भविकोकविकाशन कंजवनं. : जगजीत महारिपु. मोहहरं । रजज्ञानगांबरचूरकर ॥१॥ गर्मादिक मंगल मंडित हो। दुख दारिदको नित खंडित हो। जगमाहिं तुमी सत पंडित हो। तुमहीभवभावविहंडित हो॥५॥ हरिवंससरोजनकों रवि हो। बलवंत.महंत तुमी कवि हो॥ . लछि केवल धर्मप्रकाश कियौ।भवलौंसोई मारगराजतियो॥३॥ . पुनि आपतने गुणमाहिं संही। सुर मग्न रहे जितने सब ही। विनकी वनितागुण गावत हैं।लय ताननिसों मनभावत हैं। पुनि नाचत रंग अनेक भरी। तुव भक्तिविषपा एम घरी। झन झननं झनन भनन । सुर लेत. तहाँ तननं तननं ॥५॥

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