Book Title: Jain Granth Sangraha
Author(s): Nandkishor Sandheliya
Publisher: Jain Granth Bhandar Jabalpur

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Page 71
________________ - 308 जैन-मन्य-संग्रह / करना हमें माज क्या क्या है यह विचार निज काज करें। कार्यिक शुद्धि क्रिया करके फिर लिन दर्शन स्वाध्याय करें। मौन धार कर तोपित मनले सधा वेदना, उपशम हित.। विघ्न कर्म के क्षयोपशम से भोजन प्राप्त करें परमिता है जिन हो हितकर यह भोजन तन मन हमरे स्वस्थ रहें। आलस तजकर "दीप" उमंग से निज परहित में मगन रहें। सांझ के भोजन समय की इष्ट प्रार्थना। जय श्री महावीर प्रभु की कह अरु निज कर्तव्य पूरण कर। संध्या प्रथम मौन धारण कर भोजन करें शांत मन कर / / परमित भोजन करें ताकि नहिं मालस अरु दु:स्वप्न दिखें। "दीप" समय पर प्रभू सुमरण कर लो जगे सुकार्य लखें / कुगुरु, कुदेव कुशास्त्र की भक्ति का फल / अन्तर वाहर अन्य नहि, ज्ञान ध्यान तप लीन / सुगुरु विन कुगुरु नमें, पड़े नर्क हो दीन // 1 // दोष रहित सर्वज्ञ प्रभु, हित उपदेशी नाय नाया श्री अरहंत सुदेच, तिनको नमिये माय // 2 // राग द्वेप मल कर दुखी, हैं कुदेव जग रूप। तिनकी वन्दन जो करें, पडै नर्क भव कप // 3 // मात्म मानं वैराग सुख, दया. छमा सत शील! भाव नित्य उजल करें, है सुशान भव कील // 4 // राग देश इन्द्रों विषय, प्रेरक सर्व शास्त्र / तिनको जो वन्दन करें, लहै नर्क विट गात्र 5 //

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