Book Title: Jain Granth Sangraha
Author(s): Nandkishor Sandheliya
Publisher: Jain Granth Bhandar Jabalpur

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Page 66
________________ २८२. जैन-अन्य-संग्रह ! इन्द्र सुर सव साय कर आरति कसा ॥ इन्द्र सुर सव साज ले इहि भांत पूजा विस्तरौं।तेह॥५॥ दीप रतनन.जोत जामें नत्य कर आरति करौं। इन्द्र सुर सव साज ले इहि भांत पूजा विस्तरौं। तेक्व०॥६॥ धूप दशाङ्गी खेइये वसु कर्म भव भव के दहैं। .. इन्द्र सुर साज ले इह भांत पूजा विस्तरौं ॥ तेह०॥ ७॥ फलयुक्त ले भागे धरै प्रभू फल फले से अनसरों। इन्द्र सुर सव साज ले इहि भांत पूजा विस्तरौं। तेहूः॥८॥ वसु.द्रव्य ले एकत्र इह विधि अर्घ ले मङ्गल पढौं।.. ... इन्द्र सुर सव सव साज ले इहि भांत पूजा विस्तरोतेहगा अथ शान्तिपाठः पारभ्यते। .... (शान्तिपाठ बोलते समय दोनों हाथोंसे पुष्पवृष्टि करते रहना चाहिये ) ___दोधकवृत्तम् । शान्तिजिनं शशिनिर्मलवक्र शीलगुणवतसंयमपात्रम् । . अटशतार्जितलक्षणगानं नौमि जिनात्तममम्वुजनेत्रम् ॥१॥ पञ्चममीप्सितचक्रधराणां पूजितमिन्द्रनरेन्द्रगणैश्च । . . शान्तिकरं गणशान्तिममीपतुः-षोडशतीर्थकरं प्रणमामि ॥२॥ दिव्यतरु सुरपुष्पसुटिंदुन्दुभिरासनयोजनघोषौ। . . आतपवारणचामरयुग्मे.यस्य विभाति च मण्डलतेजः ॥३.. तं जगदर्चितशान्तिजिनेन्द्र शान्तिकर शिरसा प्रणमामि.... सर्वगणाय:तु यच्छतु-शान्तिं मह्यमरं पठते. परमां च ॥४॥ . अशोकक्षा सुरपुष्पवृष्टिर्दिष्यध्वनिश्शामरमासनं च ।। भामण्डलं.. ' दुन्दुमिरातपत्र समातिहायोणि- जिनेश्वराणाम् ॥ (यह श्लोक क्षेपक है, इसे बोलना न चाहिये।), .

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