Book Title: Jain Granth Sangraha
Author(s): Nandkishor Sandheliya
Publisher: Jain Granth Bhandar Jabalpur
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जैन - प्रन्थ-संग्रह |
१६३
श्री नन्दीश्वर दीप ( अष्टानिका ) की पूजा | अडिल ।
सर्व परव में बड़ो अठाई पर्व है । नंदीश्वर सुर जाहिं लेंय वसु दरब हैं । हमें सकति सेो नाहिं इह कर थापना । पूजों निनगृह प्रतिमा है हित आपना ॥ १ ॥
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ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्वीपेद्विपंचाशज्जनालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्र अवतर अवतर । संवौषट् । ॐ ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्वीपेद्विपञ्चाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठः ठः । श्रीनन्दीश्वदीपेद्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमा समूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव । वषट् । कंचनर्माणमय भृङ्गार, तीरथनीर भरा। तिहुँ धार दयो निरवार, जामन मरन जरा ॥ नन्दीश्वर श्रीजिनधाम, घावन पुञ्ज करों । वसुदिन प्रतिमा अभिराम, आनंदभाव धरों ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणे द्विपञ्चाशज्जिनालयस्थजिन प्रतिमाम्या जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल निर्वपामीति स्वाहा ॥ १ ॥
भवतपहर शीतलवास, सो चन्दननाहीं ।
निर्वपामि ॥ १ ॥
प्रभु यह गुन कीजे सांच, भायो तुम ठांहीं ॥ नंदी० ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं श्रीनन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणे द्विपञ्चाशज्जिनालय स्थजिनप्रतिमाभ्यो अक्षयपदप्राप्तये
चन्दनं
उत्तम. अक्षत जिनराज, पुञ्ज धरे सोहैं ।
सब जीते अक्षसमाज, तुम सम अरु को है ॥ नंदी० ॥ ३ ॥

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