Book Title: Jain Granth Sangraha
Author(s): Nandkishor Sandheliya
Publisher: Jain Granth Bhandar Jabalpur

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ २५४ जैन-नन्य-संग्रह। श्री सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्रेभ्यो अर्धं निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥ प्रथम सिद्धवरकूट मनोहर आनंद मंगलदाई । अजित प्रभु जह ते शिव पहुंचे पूजो मनवचकाई । कोड़ि अस्सी एक अर्व मुनि चौवन लाख सुगाई । कर्म काट निर्वाण पधारे तिनको अर्घ चढ़ाई। ॐ ह्रीं श्री सम्मेदशिखिर सिद्धटते श्री अजितनाथ जिनेन्द्रादि एक अर्व अस्सी कोड़ि चौवन लाख मुनि सिद्धपद प्राप्ताय सिद्ध क्षेत्रेभ्यो अर्धं निवपामोति स्वाहा ॥२॥ धवल कूट सो नाम दूसरी है.सवको सुखदाई। संभव प्रभुलो मुक्ति पधारे पाप तिमिर मिटजाई । धवलदत्त हैं आदि मुनीश्वर नव कोडाकोडि जानौ लक्ष बहत्तर सहस बयालिस पंच शतक रिष मानौ ।। कर्म नाश कर अमर पुरी गए वंदौ सीस नवाई । तिनके पद युग जलो भावसौ हरण हरष चितलाई ॥ ॐ ह्रीं श्री सम्मेदशिखर धवल कूटतें संभवनाथ जिनेन्द्रादि मुनि नव कोड़ाकोडि बहत्तर लाख व्यालिस हजार पांच से मुनि सिद्धपद प्राप्ताय सिद्धक्षेत्रेभ्यो अर्धं ॥३॥ चौपाई-आनंद कूट महा सुखदाय । प्रभु अमिनन्दन शिवपुर जाय । कोडाकोड़ि वहत्तर जानौ । सत्तर कोड़ि लान छत्तीस मानौ । सहस बयालीस शतक जु सात। कहें जिनागम मैं इस भांत । ऐरिष कर्म काट शिव गये, तिनके पद युग पूजत भये ॥ॐ ह्रीं श्री आनन्दकूटतें अभिनन्दननाय जिनेन्द्रादि मुनि वहत्तर कोडाकोडि अरु सत्तर कोड़ छत्तीस लाख व्यालीस हजार सातसै मुनि सिद्धपद प्राप्ताय अघ निर्व.. पामोति स्वाहा ॥धा अडिल्ल छन्द-अवचल चौथौ कुट महा सुन धाम जी । जहं ते सुमति जिनेश गये निर्वाणजी।। कोड़ाकोडि एक मुनीश्वर जानिये । कोडि चौरासी लाख बहत्तर मानिये ॥ सहस इक्यासी और सातसे गाइये । कर्म

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71