Book Title: Jain Granth Sangraha
Author(s): Nandkishor Sandheliya
Publisher: Jain Granth Bhandar Jabalpur

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Page 17
________________ जैन-प्रन्य-संग्रह) शान्तिनाथाष्टक स्तोत्र। ... नाना विचित्रभव दुःख रासी, नाना विचित्रं मोहान पांशी । पापानि दोपानिहरंति देवा. इह जन्म शरणे श्री शान्तिनाथं ॥१॥ संसार मध्ये मिथ्यात्व चिंता, मिथ्यात्व मध्ये कर्मानि बद्धा। ते वन्ध छेदन्ति देवाधि देवा, इह जन्मे मारणे श्रीशान्तिनाथं ॥२॥ कामल्य क्रोधस्य माया त्रिलो, चतु: फपाय इह जन्म घन्धम् । ते.वन्ध छेदन्ति देवाधिदेवा, इह जन्म शरणे श्रीशान्तिनाथं ॥३॥ जातस्य मरणं अवृतस्य वचनं पति जीवा बहु दुःख जन्म। ते बंध छेदन्ति देवाधि देवा, इह जन्म शरणे . श्रीशान्तिनाथं ॥४॥ चारित्र होने नर जन्म मध्ये, सम्यक र प्रतिपाल यति। ते जीव लीडन्ति देवाधि देवा, इह जन्म शरणे श्रीशान्तिनाथं ॥५॥ मृदु वापमहीने कठिनस्य चिन्ता, परजीव हिंसा मनसोच बंधा। ते बंध छेदंति देवाधिदेवा, इह जन्म शरणे श्रीशान्तिनाथाम परद्रव्य चोरी परदार सेवा, हिंसादि कक्षा अनुवर बेछ । ते पंध छेदंति देवाधि देवा, इह जन्म शरणे श्रीशान्तिनाथं ॥७ पुत्रानि मित्रानि कलत्र बंध, इह वध मध्ये बहु जीव बंध। ते बंध छेदति देवाधि देवा, इह जन्म शरणे श्रीशान्तिनाथम् । जपति पढ़ति नित्यं शान्तिनाथा विशुद्ध स्तवन मधु गिरायां, पापतापाप हार शिव सुख.निधि पोतं, सर्व सत्वानुक। : । कृत भुनि गुणभद्रं, सर्व कार्या सुनित्यं । विमानाय चोर'...

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