Book Title: Jain Granth Sangraha
Author(s): Nandkishor Sandheliya
Publisher: Jain Granth Bhandar Jabalpur
View full book text
________________
१६
जैन ग्रन्थ संग्रह।
- बी पन्दिरणी की वेदी गृह में प्रवेश करते ही "जब सर्व वय निति, निनिसदि" इस प्रकार वार करने मोकार नकार बार पाठ परे। तत्पश्चाद
बत्तारि मंगलं-भरहंत मंगलं । सिद्ध मंगलं साहू मंगलं । केवलिपएणचो धम्मो मंगलं ॥१॥ चत्तारि लोगुचमाअरहंत लोगुत्तमा । सिद्ध लोगुत्तमा । साहू लोगुत्तमा। केवलिपण्णतो धम्मो लोगुचमा ॥२॥ चचारिसरणं पध्वजामिअरहंत सरणं पव्वंजामि । सिद्ध सरणं पवनामि । साहू 'सरणं.पवजामि । केवलिपएणतो धम्मो सरणं पवजामि ॥ ॐ झौ झी स्वाहा ॥
वहां पर चौबीस धीयकमान सेवा पाहिए। पार देखिए।
काल सम्बन्धिचतुर्विशति तीर्थकरेन्यो नमोनमः। अद्य में सफले जन्म नेत्रे च सफले मम । स्वामद्राक्षं यतो देव हेतुमक्षयसम्पदः ॥१॥ अद्य संसार गम्मीर पारावार सुदुस्तरः। सुतरोऽयं क्षणेनैव जिनेन्द्र तव दर्शनात् ॥२॥ अद्य मे क्षालितं गावं नेच विमले कते। स्नातोऽहं धर्मतीर्थेषु जिनेन्द्र तव. दर्शनात ॥२॥ मध मे सफलं जन्म.प्रशस्तं सर्वमङ्गलम् । संसारार्णवतीर्णोऽहं जिनेन्द्र तव दर्शनाव un अद्य कर्माष्टकच्चाले विधूतं सकषायकम् । . दुर्गतेविनिवृतोऽहं जिनेन्द्र तव दर्शनात् ॥५॥

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71