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(८)
तर्ज पूर्ववत् । गज़ल दगाबाज़ी (कपट) निषेध पर ।। जीना तुझे यहां चार दिन तूं दगा करना छोडदे । पाक रख दिल को सदा तूं दगा करना छोडदे ॥ टेर ॥ दगा कहो या कपटजाल फरेब या तिरघट कहो । चीता चोर कवानवत, तूं दगा करना छोडदे ॥ १॥ चलते उठते देखते, बोलते हँसते दगा । तोलने और नापने में, दगा करना छोडदे ॥ २ ॥ माता कहीं बहनें कहीं, पर नार को छलता फिरे । क्यों जाल कर जाहिल वने, तूं दगा करना छोडदे ॥३॥ मर्द की औरत बने, औरत का ना पुरुष हो । लख चोरासी योनि भुगते, दगा करना छोडदे ॥ ४ ॥ दगा से आ पोतना ने, कृष्ण को लिया गोद में । नतीज़ा उसको मिला, तूं दगा करना छोडदे ॥ ५ ॥ कौरवों ने पांडवों से, दगा कर जूवा रमी। हार कौरवों की हुई, तूं दगा करना छोडदे ॥६॥ कुरान पुरान में है मना, कानून में लिखी सज़ा । महावीर का फरमान है, तूं दगा करना छोडदे ॥ ७ ॥ शिकारी करके दगा, जीवों की हिंसा वह करे । मंजार और बुग कपट से हो, दगा करना छोडदे ॥८॥ इज्जत में आता फरक, भरोसा कोई नहीं गिने । मित्रता भी टूट जाती, दगा करना छोडदे ॥६॥
। लेजायगा, तूं गौर कर इस पर जरा । चौथमल