Book Title: Jain Gazal Gulchaman Bahar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 11
________________ (६) कहे सरल हो, तूं दगा करना छोडदे ॥ १० ॥ तजे पूर्ववत् । गज़ल सबर (संतोष) की। सवर नर को आती नहीं, इस लोभ के परताप से । लाखों मनुष्य मारे गये, इस लोभ के परताप से ॥ टेर ॥ पाप का वालिद वडा, और जुल्म का सरताज़ है। वकील दाजख का वना, इस लोभ के परताप से॥१॥अगर शहनशाह बने, सर्व मुल्क ताये में रहे । तो भी ख्वाहिश नहीं मिटे, इस लोभ के. परताप से ॥२॥ जाल में पक्षी पड़े, और मच्छी कांटे से मरे । चोर जावे जेल में, इस लोभ के परताप से ॥ ३॥ ख्वाब में देखा न उसको, रोगी क्यों नहीं नीच हो । गुलामी उस की करे, इस लोभ के परताप से ॥४॥ काका भतीजा भाई माई, वालिद या वेटा सज्जन । वीच कोर्ट के लड़े, इस लोभ के परताप से ।। ५ ॥ शम्भूम चक्रवर्ती राना, सेठ सागर की सुनो। दरियाय में दोनों मरे, इस लोभ के परताप से ॥ ६ ॥ जहां के कुल माल का, मालिक बने तो कुछ नहीं। प्यारी तज परदेश जा इस लोभ के परताप से ॥ ७॥ वाल वच्चे वेच दे, दुख दुर्गुणों की खान है। सम्यक्त्व भी रहती नहीं, उस लोम के परताप से 10 कहे चौथमल सत्तुरू वचन, संनोप इसकी हैं वा । और नसीहत नहीं लगे, इस लोभ के परताप मे ||

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