Book Title: Jain Gazal Gulchaman Bahar Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 8
________________ 0. (६) तर्ज पूर्ववत् । गज़ल कोष (गुस्सा ) निपेध पर । मादत तेरी गई बिगड़, इस क्रोधके परताप से। अजीज़ों को बुरा लगे, इस क्रोध के परताप से ।। टेर ॥ दुश्मन से बढ़ कर है यही, मोहब्बत तुड़ावे मिनिट में ? सर्प मुसाफिक डरे तुझसे, क्रोध के परताप से ॥ १ ॥ सलवट पड़े मुंह पर तुरव कम्पे मानिन्द जिन्दके ! चश्म भी कैसे बने. इस क्रोध के परताप से ॥२॥ जहर या फांसीको खा, पानीपड़ कई मरगये। बतन कर गये तर्क कई, इस क्रोध के परताप से ॥ ३॥ बाल बच्चों को भी माता क्रोध के वश फैंकदे । कुछ सूझता उसमें नहीं, इस क्रोधके परतापसे ॥ ४ ॥ चंडरुद्र प्राचार्यकी, मिसाल पर करिये निगाह । सर्प चंडकोसा हुवा इस क्रोध के परताप से ॥ ५॥ दिल भी काबू नहीं रद्दे, नुकसान कर रोता वही । धर्म कर्म भी नहीं गिने, इस क्रोध के परताप से ॥६॥ खुद जले,परको जलाये विवेक की हानि करे । सूख जाने सन उसका, क्रोध के परताप से ॥ ७॥ जनके लिये हँसना बुरा, चिरागको जैसे हवा । ज्यों इन्सान के हकमें समझ, इस कोध के परताप से ॥ ॥शैतानका फरजन्द यह और जाहिलों का दोस्त है । बदकार का चाचा लगे, इस क्रोध के परतापसे ॥ इबादत फाका कसी, सब रखाक में देवे मिला । दोPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 376