Book Title: Jain Gazal Gulchaman Bahar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 7
________________ (५) वल सुधर जा तो दीन कोई मुश्किल नहीं । चौथमल कई इस लिये करके तो कुछ दिखलाइयो ॥ १२ ॥ तर्ज पूर्ववत् । गजल नेक नसीहत की। दिल सताना नहीं रवा, यह खुदा का फरमान है । खास इबादत के लिये, पैदा हुवा इन्सान है । टेर ॥ दिल वडी है चीज़ जहां में, खोल के देखो चशम | दिल गया तो क्या रहा, मुर्दा तो वह स्मशान हैं ।। १ ॥ जुल्म जो करता उसे, हाकिम भी यहां पर दे सज़ा । मुआफ हरगिज़ होता नहीं, कानून के दरम्यान ॥२॥ जैसे अपनी जान को शाराम तो प्यारा तगे। ऐसे गैरों को समझ तूं, क्यों वना नादान है ॥३॥ नेकी का बदला नेक है, यह कुरान में लिखा सफा | मत बदी पर कस कमर, तूं क्यों हुवा वेईमान है ॥ ४ ॥ वे गुफ्तगु दोजख में, गिरफ्तार तो होगा सही। नहीं गिनती है वहां पर, राजा या दीवान है ॥ ५ ॥ वैठ कर तू तख्त पर गरीबों की तूं नही सुनी । फरिश्ते वहां पीटते, होता बड़ा हैरान है॥६॥ गले कातिले के वहां फेरायगा लेके छुरा । इन्सान होके नहीं गिनी कहो यह भी कोई जान है ।। ७ ॥ रहम को लाक जरा तुं, सख्त दिल को छोडदे । चौथमल कहे हो भला, जो इस त. रफ कुछ प्यान है ॥८॥

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