Book Title: Jain Gazal Gulchaman Bahar Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 5
________________ . (३) तर्ज पूर्ववत्. गज़ल नवयुवकों की। उठो बादर कस कमर, तुम धर्म की रक्षा करो । श्री पीर के तुम पुत्र होकर, गीदड़ों से क्यों डशे ॥ टेर ॥ दुर्गति पडते जो प्राणी, को धर्म का आधार है। यह स्वर्ग मुवि में रखेगा, धर्म की रक्षा करो ॥ १ ॥ धर्मी घुरूप को देख पापी, गज स्वान वत् निन्दा करे । हो सिंह सुग्राफिक जवाब दो, तुम धर्म की रक्षा करो ॥ २॥ धन को देकर तन रखो तन देके रखो लाज को ! धन लाज, तन अर्पण करो, तुम धर्य की रक्षा करो ॥ ३ ॥ माता पिता भाई, जंवाई, दोस्त फिर तो डर नहीं । प्रचार धर्म से मत इटो, तुम धर्म की रक्षा करो ' ॥४॥ धैर्य का धरो धनुष्य, और तीर मारो तर्क का । कुयुक्ति __ खटन करो. तुम धर्म की रक्षा करो ॥५॥ धर्मसिद मुनि, लवजी नपि लोकाशार संकट सहा । धर्म को फैला दिया, तुम धर्म की रक्षा करों ।। ६ ।। शुरू के परसाद से, संह चौथ__ मल उत्साहियों । मत घटो पीछे कभी, तुम धर्य की रक्षा पारो ॥ ७॥ तर्ज पूर्ववत्. मजल नोजवानों के जगाने की। अर जवानों देतो जल्दी करके कुछ दिखलाइयो । उटेरPage Navigation
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