Book Title: Jain Dharmna Karm Siddhantnu Vigyan
Author(s): Jayshekharsuri
Publisher: Shahpuri Jain Sangh Kolhapur

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Page 28
________________ Jain Education International જીવનું મૌલિક અને વિકૃત સ્વરૂપ अज्ञान अंधापादि निद्रा ऊंच कुल ज्ञानावरण / नीच कुल गति, शरीर अनंत/ अगरु ज्ञान दर्शनावरण/ लघुताअनंत, मिथ्यात्व अविरति इंद्रियादि अरूपिता (૨૩) For Private & Personal Use Only मोहनीय वीतरागता: +1 सौभाग्य यश,अपयश यादि म नंतवाय अरूपिता जीव सम्यग्दर्शन: राग-द्वेष स्थान LIL अनादाय र काम क्रोधादि वेदनीय' आदि काम क्रोधादि अंतराय आयुष्य अनंत सुख \ /ikel जन्म जीवन - कृपणता दरिद्रता पराधीनता शाता अशाता www.jainelibrary.org 94-सूर्य, ८ गुgust!, ८ ६४१ मने तेनी वितिओ.

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