Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): G R Jain
Publisher: G R Jain

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Page 9
________________ मंगलाचरण नमो नमः सत्व हितंकराय, वीराय भव्याम्बुज भास्कराय । अनन्तलोकाय सुरार्चिताय, देवाधिदेवाय नमो जिनाय ।। १. विज्ञान क्या है ? विज्ञान क्या है ? इस विषय को हम थोड़े शब्दों में प्रकट करें तो कह सकते हैं 'नाप-तौल का नाम विज्ञान (Science) है ।' जिस वस्तु का नाप-तौल नहीं होता वह इसकी परिधि में नहीं हो सकता। उदाहरण के तौर पर हम प्रात्मा को लें। जैन सिद्धान्त में वणित प्रात्मा एक अरूपी पदार्थ है । जो वस्तु अरूपी होती है उसकी नाप-तौल नहीं हो सकती। यहां प्ररूपी से मतलब यह नहीं लेना कि जो चीज अाँखों से दिखाई न दे वह सब अरूपी है । हवा बहती हुई हमारे शरीर को स्पर्श करती है, भले ही वह हमें दिखाई न दे, किन्तु इससे क्या उसके अस्तित्त्व से इन्कार किया जा सकता है ? हवा को गुब्बारों में भरा जा सकता है जिससे उसके भारीपन का अनुमान सहज ही होता है। लेकिन प्रात्मा को न पकड़ा जा सकता है, न हुआ जा सकता है मोर न किसी में बन्द किया जा सकता है, नेत्रों

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