Book Title: Indian Antiquary Vol 14
Author(s): John Faithfull Fleet, Richard Carnac Temple
Publisher: Swati Publications

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Page 216
________________ 194 THE INDIAN ANTIQUARY. [JULY, 1885. ताहि निति नबीन परन सुख पात्रोत सुनतहि रूप नरायन । आनन्द प्रेम अपार ॥ कह बिद्यापति इह रस कारन रूप नरायन बिजय नरायन लछिमा पद करि ध्यान ।। बैद्यनाथ सिब सिङ्घ । मीलन भावि दुहुँक करु बरनन रसेर कारन रसिका रसिक ___तसु पद कमल भिरिङ्ग ॥ कायाटि घटने रस । रसिक कारन रसिका होयत चण्डि दास सुनि विद्यापति गुन जाहाते प्रेम बिलास ॥ दरसन भेल अनुराग। स्थलत पुरुषे काम सुक्ष्म मति बिद्यापति तब चण्डि दास गुन - स्थलत प्रकृति रति । _ दरसन भेल अनुराग ॥ दुहुँक घटने जे रस होयत ईई उतकण्ठित भेल एबे ताहा नाहि गति ।। माहि रूप नरायन केबल दुहुँक जोटन बिनहि कखन बिद्यापति चलि गेल । ना हय पुरुष नारि। चण्डि दास तब रहइन पारइ प्रकृति पुरुषे जे किछु हायत चललाहिं (? चललन्हि) दरसन लागि । - रति प्रेम परचारि ॥ पन्थहि ९हुँ जन हुँ गुन गारोल पुरष अबशः प्रकृति सवश दैहुँ हिय हुँहुँ रहु जागि । ___ अधिक रस जे पिये। देबहि हुँ हुँ हूँही दरसन पाओल रति सुख काले अधिक सुखहि लखइ न पारइ कोइ। ता नाकि पुरुषे पाये। हैं ₹ही नाम सबने तहिं जानल दुहुँक नयने निकसये बाण रूप नरायन गोइ ।। बाण जे कामेर हय । रतिर जे बाण नाहिक कखन ममय बसन्त याम दिन माझाह - तबे कैसे निकसय ।। बट तले सुरधुनी तीर । काम दावानल रति जे शीतल चण्डि दास कबि रज्जने मिलल सलिल प्रणय पात्र ।। पुलक कलेबर गीर ।। कुल काट खड़ प्रेम जे आधेय पचने पिरिति मात्र । दुहुँ जन धैरज धरइ ना पार मगहि रूप नरायन केबल पचने पचने लोभ उपजिया जब भेल द्रबमय । दुहुँक अबस प्रतिकार ।। सेइ बस्तु एबे बिलासे उपये धैरज धरि दुहुँ निभृते आलापइ" ताहाके रस जे कय ।। पुछत मधुर रस कि । रसिक हइते किये रस उपजायत भणे विद्यापति चण्डि दास तथि रस हइते रसिक कहि । रूप नरायन सङ्गे। दुईं आलिङ्गन करल तखन रसिका हइते रसिक किये होयत रसिक हइते रसिका। भासल प्रेम तरङ्गे॥ रति हइते प्रेम प्रेम हइते रति TRANSLATION. 1. किये काहे मानब अधिका ।। The mutual love of Chandi-Dasa and Vidyaपुछत चण्डि दास कबि रजने pati is the presentation of love itself in all its 39 Half a line is missing here. 0 Here again half s line is missing. and is fall of Bang&It expressions, e.g. us the siga "From this verse to the end the metre is hopeless. It of the ablative; Vidy&pati could never have written this. Gabad imitation of Vidyspati, by some Baigalf imitator, I किये inthe Baigat way of writing the Maithilt किप.

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