Book Title: Indian Antiquary Vol 14
Author(s): John Faithfull Fleet, Richard Carnac Temple
Publisher: Swati Publications

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Page 221
________________ BARODA PLATES OF DHRUVA II. OF SAKA 757. JULY, 1885.1 which is also found on the other inscriptions of the Rashtrakutas of Gujarât; and which 199 is evidently intended for an actual representation of the sign-manual. TEXT. भोकुं स्वफलानि भूरितप श्वेतातपत्रमहतरविकर व्राततापात्सलीसदानी [1] श्रीमद्रोविन्दराजी (First two plates not forthcoming.) Third plate; first side. [+] दाता" मानभृदग्रणी गुणवतां येोसे श्रियो बलभी [+] सा स्थान अगामापरं ।। [1] मेन ['] लं जज्ञे नासीरधूलीधवालतशिरसा वल्लभाख्यः [+] जितजगदहितस्त्रैणवैधव्यदक्षः (1) तस्यासीत्सूनुरेकः क्षणरणदलितारातिसत्तेभकुंभः । [२] [] तस्यानुजः श्रीध्ववराजनामा महानुभावोपहत (:) प्रतापः [1] प्रसाधिताशेषनरेन्द्रचक्रः [6] क्रमेण वाला वपुर्व्वभूव ॥ [३] रक्षता येन नि चतुरंधिसंयुतं [] राज्य धम्मैलो[7] कामां कृता दृष्टिः परा हृदि । [४] यस्थात्मजा जगति सम्मथितारुकीर्त्तिग्गोविन्दराज इति गो[] ललामभूत । स्त्यागी पराक्रमधनमकतासन्तापितानि जनवल्लभभूत् ।। [५] [१] एकोनेकनरेन्द्रवृन्दसहितान्यस्तान्समस्तानपि मोखातासिलतामहारविधुरान्वया [10] संयुगे [1] लक्ष्मीमप्यचला चकार विल्सन्सचामरग्राहिणी संसीदगुरु विमसज्जनसुहद्दसंसीदद्गुरुविप्रसज्जनसुहृद्व["] धूपभीग्यां भुवि। [] तत्युभोज ते नाकमाकम्पितरिपुमजे [1] महाराजशर्मास्यः ख्यातोराजा[10] भवदुणे [७] राजाभूत्तयितृव्यो M रिभवविभवोद्भूत्यभविकहेतुर्लक्ष्मीवानिन्द्रराजो गुणि[5] नृपनिकरान्तशनत्कोरकारी [1] सगादम्यान्व्युदस्य पुकटनिया यन्नृपान्सेव्यमाना [+] राजधीरेव चक्रे सकलकविजनोद्रतकथ्यसभाव । [८] श्रीकर्मराज इति चक्षितराज्यभा[15] T: सार: कुलस्य तनये पार्थः नियशालिशौर्यस्यस्यकेवद्विभवनन्दितवन्धुसार्थः [29] सदैव धनुषि प्रथमः शुचीनां । [९] खेच्छागृहीतविनयान्दृढसंघभावः मौवृत्तट्टमतर Third plate; second side. महा 17 [17] शुल्किकराष्ट्रकूटानुत्खातखज निजवाहुवलेन " जित्वा योमोघवर्षमचिरात्स्वपदे व्यध[18] त ।। [१०] पुत्रीयतस्तस्य महानुभावः कृती कृतज्ञः कृतवीर्यवीर्य [1] वशीकृताशेषनरेन्द्रवृन्दो वभूव [10] सूनुर्धुवराजनमो ॥ [११] चन्द्रो जडी हिमगिरिः सहिम मकृत्या वातश्चलश्च तपनस्तपन (1) स्वभाव। [1] [20] क्षारः पयोधिरिति यः सममस्य नास्ति येनोपमा निरुपमस्तत एव गातः ।। [१२] अचिराभोज्वलव[21] पुषि क्षितिसंतापापहारिणि द्युम्नं [1] धारावषै वर्षति जलद इव न कः कृतार्थस्यात् । [१३] प्रस्माण्डमे[x] तत्किमिति ममासुजा न भव्यमाणेन पुरा विनिम्मित [1] एवं विचिन्त्य धुबराजनीतिविधातुरासी[**] सुतरामसूयिनी । [१४] तेनेदमनिलविमुचलमालोक्य जीवितमसारं [1] क्षितिदानपरम[+] पुण्यः प्रवर्त्तितो धर्मदायो । [१५] स च समधिगताशेषमहाशब्दमहासामन्ताधिपतिधारविर्षसमय [25] श्री धुतराजदेवः यथासम्वध्यमानकान्राष्ट्रपतिविषयपतिग्रामकूटायुक्त नियु[20] क्त [का]धिकारिकमहत्तरादीन्समनुदर्शयत्यस्तु वः संविदितं यथा मया श्रीखेटकवाहः सर्व्वमङ्ग 20 Plate III. 4. Line 1, read योसौ. L. 2, the ज of जगामा° । तस्याभव. L. 16, read सदेव. . has an unusual shape. L. 3, जज्ञे looks almost like जज्ञो; read जग्मे and धवलित'. I. 4, read दक्षस्तस्या' and * मत्तेभ' IL & rend श्रीध्रुव L. 7, read 'कानां and तस्यात्मज. L. 8, rend 'भूतः । त्यागी and वन:. L. 8, read बडा I. 10, road 'ग्राहिण. L. 11, read तत्पुत्रोत्र गते बजे and श्रीमहा". L. 12, rond 'गुणैः || L. 18, rend 'रान्तचमत्कार, सङ्गादन्या प्रकटित and ये नृपान्सेवमाना. L. 14, rend "स्वभावम् and रक्षित'. I. 15, read तनयो नयशालिशौर्यः । 11 Plate III. B. Line 17, the of शुल्किक" in indistinct, read कूटान् | उत्खात L. 18, read 'वीर्यवीर्यः. I 19, rand राजनामा. 2. 20, read तै: for यः, गीत: and 'भोज्ज्वल. L. 21, read कृतार्थ: स्यात् and ब्रह्माण्ड . L. 22, the तक of त्किमिति looks as if it were composed of and, and the of विनिमित as if it consisted' of म् and स; rend कीर्ति'. L. 28, rend विद्यु° L. 24, read 'धारावर्ष. L. 25, read श्रीभुव".

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