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हरीतक्यादिनिघंटे
अथ चतुरूषणस्य लक्षणगुणाः. त्र्यूषणं सकणामूलं कथितं चतुरूषणम् ।
व्योषस्यैव गुणाः प्रोक्ता अधिकाश्चतुरूषणैः ॥६६॥ टीका-अब चतरूषणके लक्षण और गुण कहते हैं. त्र्यूषण अर्थात् त्रिकटु पीपलीमूलके सहित चतुरूषण कहा गया है. त्रिकटुसेंही अधिक गुण चतुरूषणमें होते हैं ॥६६॥
चव्यगुणाः. भवेचव्यं तु चविका कथिता सा तथागुणा।
कणामूलगुणं चव्यं विशेषाद्गुदजापहम् ॥ ६७॥ टीका-अब चव्यके गुण लिखते हैं. चव्य, चविक तथा उषण है. और जो गुण पीपलमें हैं वही चव्यमेंभी जानों. और विशेषकरिके चच्य ववासीरकों शांति करता हैं ॥ ६७॥
गजपिपल्या नामानि गुणाश्च. चविकाया फलं प्राज्ञैः कथिता गजपिप्पली। कपिवल्ली कोलवल्ली श्रेयसी वशिरश्च सा ॥ ६८ ॥ गजकृष्णा कटुतश्लेष्मद्वह्निवर्धनी।
उष्णा निहंत्यतीसारं श्वासकण्ठामयामीन् ॥ ६९॥ टीका-अब गजपीपलके नाम तथा गुण लिखते हैं । चविकाके फलकों शास्त्रमें गजपीपल कहतेहैं. फिर ये कपिवल्ली, कोलवल्ली, श्रेयसी, वशिर, इन चार नामोसे प्रसिद्ध है ॥ ६८ ॥ और ये गजपीपल स्वादमें कडवी और वातकफके रोगोंकों नाश करनेवाली तथा अग्निकों दीप्त करनेवाली और उष्ण यानी गरम होती है, और अतीसार यानी दस्तोकी वामारी, श्वासरोग, और कंठरोग कृमिरोग इन सबरोगोंकों हरती है ॥ ६९॥
अथ चित्रकनामगुणाः. चित्रकोऽनलनामा च पीठो व्यालस्तथोषणः।
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