Book Title: Dhyanhatak Tatha Dhyanstava
Author(s): Haribhadrasuri, Bhaskarnandi, Balchandra Siddhantshastri
Publisher: Veer Seva Mandir
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सम्पादकीय
.. प्रस्तुत संस्करण में पायाभोर ध्यानस्सप ये दो अन्य प्रक्षित हो रहे हैं। दोनों ही अन्य पचापि शब्द-शरीर से कृष्ण हैं, फिर भी विषय-विवेचन की दृष्टि से वे अपने पापमें परिपूर्ण हैं। इन दोनों अन्यों में अपनी-अपनी शैली से ध्यान का सुन्दर व महत्त्वपूर्ण वर्णन किया गया है । ध्यानशतक जहां प्राकृत भाषा में गाथाबद्ध है वहां ध्यानस्तव संस्कृत श्लोकों में रचा गया है। . ध्यानशतक में केवल १०५ गाथायें हैं। इनमें से लगभग ४६-४७ गाथायें भाचार्य वीरसेन द्वारा चटखण्डागम की टीका धवला में उद्धत की गई हैं (देखिये प्रस्तावना पृ. ५६.६२)। षवला का वह भाग (पु. १३) जिस समय सम्पादित होकर प्रकाशित हुअा था उस समय ये गाथायें किस ग्रन्थ की हैं, यह पता महीं लग पाया था। कुछ समय के पश्चात् संशोधन कार्य के वश जब मैं मावश्यकसूत्र का परिशीलन कर रहा था तब वे गाथायें वहाँ मुझे हरिभद्र सूरि के द्वारा अपनी टीका में पूर्ण रूप से उद्धृत प्रस्तुत ध्यानशतक में उपलब्ध हुई। तब मैंने इस ध्यानशतक का तन्मयता से अध्ययन किया। ग्रन्थ मुझे बहुत उपयोगी व महत्त्वपूर्ण प्रतीत हुमा। इससे उसे प्रकाश में लाने की मेरी इच्छा बलवती हो उठी। तब मैंने हिन्दी अनुवाद आदि के साथ उसके कार्य को सम्पन्न कर डाला। अब समस्या उसके प्रकाशन की थी। मैंने उसकी चर्चा वीर सेवा मन्दिर के महासचिव श्री महेन्द्रसेन जी जैनी से की। उन्होंने उसे वीर सेवा मन्दिर से प्रकाशित करने की योजना बनायी और उसी के आधार से उन्होंने उसे वीर सेवा मन्दिर के लिए दे चेने की इच्छा व्यक्त की। तदनुसार ग्रन्थ मैंने उन्हें सहर्ष दे दिया।
विषय की समानता और ग्रन्थ की उपयोगिता को देखते हुए उसके साथ दूसरे ग्रन्थ ध्यानस्ताको भी जोड़ देना उचित समझा गया। इस प्रकार से इस संस्करण में हरिभद्र सूरि विरचित संस्कृत टीका मेरे हिन्दी अनवाई सार्थ ध्यानशतक तथा केवल मेरे हिन्दी अनुवाद के साथ भास्करनन्दी विरचित ध्यानस्तव ये दो ग्रन्थ प्रकाशित किये जा रहे हैं।
मेरी इच्छा थी कि इन दोनों ग्रन्थों का उपलब्ध कुछ हस्तलिखित प्रतियों से मिलान कर लिया जाय । पर वे सुलभ न हो सकी। जैसा कि जिन-रत्नकोश में निर्देश किया गया है, यद्यपि ध्यानशतक की कुछ प्रतियां प्रहमदाबाद, बम्बई पोर पाटण में विद्यमान हैं; पर इसके लिये वहां लिखने पर न तो कोई प्रति ही मिल सकी और न कुछ उत्तर भी प्राप्त हुग्रा। इससे उसका सम्पादन प्रावश्यक सूत्र की टीका में उद्धत व मुद्रित संस्करण तथा विनय सुन्दर चरण ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित स्वतंत्र संस्करण के ही आधार से किया गया है।
ध्यानस्तव का सम्पादन बन-सिद्धान्त-भास्कर, भाग १२, किरण २ में श्री पं. के. भुजबली शास्त्री द्वारा सम्पादित व प्रकाशित मूल मात्र तथा कु. सुजूको मोहिरा द्वारा सम्पादित और भारतीय ज्ञानपीठ (मा. दि.जैन अपमाला) द्वारा प्रकाशित संस्करण (ई. सन् १९७३) के मापार से किया गया है। इसके बिर में उक्त दोनों बच्चों के इन संस्करणों के सम्पादकों व प्रकाशकों का विशेष प्राभारी ।
प्रस्तावना लेखन में दोबारा से प्रन्यों की सहायता लेनी पड़ी है, पर विशेष रूप से श्री. सलमानजी संपनी द्वारा लिखित 'बोगवन तवा योगविधिका' की प्रस्तावना (संबद १९७) मारक.