Book Title: Dharmsangraha
Author(s): Manvijayji, Yashovijay Upadhyay, Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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Jain Education
जिअ, उवविसिअ अलग्गविअयबाहुजुओ । मुहणंतगं च कार्य, पेहए पंचवीस इहं ॥ ६ ॥ उठिओहिओ सवि णयं, विहिणा गुरुणो करेइ किकम्मं । बत्तीस दोसरहिअं, पणवीसावस्सगविसुद्धं ॥ ७ ॥ अह सम्ममवणयंगो, करजुगविहिधरि अपुत्तिरयहरणो । परिचिंतिअअइआरे, जहक्कमं गुरुपुरो विअडे ॥ ८ ॥ अह उवविसित्तु सुत्तं, सामाइअमाइअं पढिअ पयओ । अन्भुट्टिओम्हि इच्चाइ, पढइ दुहओठिओ विहिणा ॥ ९ ॥ दा ऊण वंदणं तो, पणगाइसु जइसु खामए तिन्नि । किइकम्मं करिआयरिअमाइगाहातिगं पढइ ॥ १० ॥ इ सामाइ अउस्सग्गमुत्तमुच्चरिअ काउस्सग्गठिओ । चिंतह उज्जोअदुगं, चरिन्त [ अइआर ] मुडिक ॥ ११ ॥ विहिणा पारिअ सम्मत्त सुद्धिहेउं च पढइ उज्जोअं । तह सव्वलोअअरिहंत चेइआराहणुस्सग्गं ॥ १२ ॥ काउं उज्जोअगरं, चिंतिअ पारेह सुद्धसम्मत्तो । पुक्खरवरदीव, कइ सुअसोहणनिमित्तं ॥ १३ ॥ पुण पणवी सुस्सासं, उस्सग्गं कुणइ पारए विहिणा । तो सयलकुसलकिरिआफलाण सिद्धाण पढइ थयं ॥ १४ ॥ अह सुअसमिद्धिहेडं, सुअदेवीए करेइ उस्सग्गं । चिंतेइ नमोकारं, सुणइ व देई व तीइ थुई ॥ १५ ॥ एवं वित्तसुरीए, उस्सग्गं कुणइ सुणइ देइ थुई । पढिऊण पंचमंगलमुवविसह पमज संडासे ॥ १६ ॥ पुब्वविहिणेव पेहिअ, पुतिं दाऊण वंदणे गुरुणो । इच्छामो अणुसट्ठिन्ति भणिउं जाणूहिं तो ठाई ॥ १७ ॥ गुरुथुइगहणे थुइ तिण्णि, वद्धमाणक्खरस्सरो पढई । सक्कथयथवं पढिअ, कुणई पच्छित्तउस्सग्गं ॥ १८ ॥ एवं ता देवसिअं, राइअमवि एवमेव नवरि तहिं । पढमं दाउमिच्छामिदुक्कडं पढइ सक्कथयं ॥ १९ ॥ उद्विअ
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