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एस धम्मो सनंतनो, ओशो के प्रवचनों का संकलन है, जिसे उन्होंने भगवान
-बुद्ध के वचनों के सार-संग्रह 'धम्मपद' की गाथाओं के मर्म को जन-जन के हृदय में प्रतिष्ठित करने के लिए उच्चरित किया है।
मा अमत साधना ने इस संग्रह के प्रथम संस्करण के लिए जो संक्षिप्त, सारगर्भित भूमिका, 'पूर्वरंग' शीर्षक से लिखी थी, उसी ने मुझे प्रेरित किया कि बुद्ध-वचनों की छटा को ओशो ने जिन रोमांचकारी रंगों में उद्भासित किया है, उन सब पूर्व और अपर रंगों में डुबकी लगाकर कृतार्थ हो लूं। मैं कृतार्थ ही नहीं, कृतज्ञता से भी भर गया। ‘लाली मेरे लाल की जित देखू तित लाल'। इस लाल की झांई, परछाईं, श्याम-तनु को एक अन्य रंग से रोमांचित कर देती है-हरा। 'जा तन की झाईं परे श्याम हरित दुति होय'। बिहारी के इस दोहे का उद्धरण मैंने मा अमृत साधना के पूर्वरंग के चिंतन-प्रवाह की तरंगों को पकड़कर कर दिया। किंतु अर्थ पर विचार करता हूं तो ओशो के आध्यात्मिक करिश्मे से जुड़ जाती है यह पंक्ति-जिस तन की झाई से श्याम अर्थात अंधकार-पाप और अशुभ-हरित दुत (= द्रुत)-शीघ्रता से पलायन कर जाता है।
धम्मपद की जिस गाथा के चतुर्थ चरण से इस कृति को नामांकित किया गया है-वह है :