Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh
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श्री गिरनार महातीर्थ के खमासमण के दुहें
रैवतगिरि समरूं सदा, सोरठ देश मोझार;
मानवभव पामी करी, ध्यावुं वारंवार..(१) सोरठदेशमां संचर्यो, न चढ्यो गढ गिरनार;
सहसावन फरश्यो नहीं, एनो एळे गयो अवतार... (२) दीक्षा केवल सहसावने, पंचमे गढ निर्वाण; पावनभूमिने फरशतां, जनम सफळ थयो जाण.... (३) जगमां तीरथ दो वडा, शत्रुंजय गिरनार;
एक गढ ऋषभ समोसर्या, एक गढ नेमकुमार.... (४) कैलास गिरिवरे शिववर्या, तीर्थंकरो अनंत;
आगे अनंता पामशे, तीरथकल्प वदंत.... (५) गजपद कुंडे नाहीने, मुखबांधी मुखकोश;
देव नेमिजिन पूजतां, नाशे सघळा दोष..... (६) एकेकुं पगलुं चढे, स्वर्णगिरिनुं जेह;
हेम वदे भवोभवतणां, पातिक थाये छेह.... (७) उज्जयंत गिरिवर मंडणो, शिवादेवीनो नंद
यदुकुळवंश उजाळीयो, नमो नमो नेमिजिणंद.... (८) आधि व्याधि उपाधि सौ जाये तत्काळ दूर;
भावथी नंदभद्र वंदता, पामे शिवसुख नूर.... (९)
( अवसर्पिणी के छ: आरे में इस तीर्थ के अनुक्रम से छ: नाम : (१) कैलास (२) उज्जयंत (३) रैवत (४) स्वर्णगिरि (५) गिरनार (६) नंदभद्र)
★ श्री रैवतगिरि महातीर्थ आराधनार्थं काउस्सग्ग करूं ? इच्छं रैवतगिरि महातीर्थ आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तियाए,
अणवत्तियाए, सक्कारवत्तियाए ........ वोसिरामि.
(९ लोगस्स का काउस्सग्ग नहीं आए तो ३६ नवकार का काउस्सग्ग कर प्रगट लोगस्स बोलना )

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