Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 46
________________ से मद्यपान आदि व्यसनो में चकचूर बनकर सर्व प्रजाजनों पर अत्याचार करने लगा । भीमसेन के अत्याचार से थके हुए सर्व सामंत, मंत्री और परिवारजनों ने चर्चा विचारणा करके, यह पापी राजगद्दी के लायक नहीं है, यह मानकर कपटपूर्वक पकडकर जंगल में छोड़ दिया । सर्व शास्त्रों और न्याय में चतुर ऐसे सर्वजनसंमति से जयसेन नामक छोटे भाई का शुभ मुहूर्त में राजगद्दी पर बिठाकर राज्याभिषेक किया । इस तरफ देशनिकाल दिये जाने पर भीमसेन ने देशांतरों में घूमकर बुरे काम करना जारी रखा । जहाँ-तहाँ चोरी करना, अल्पद्रव्य के लिए भी मार्ग में आते-जाते लोगों को मारने की प्रवृत्ति जारी रखी । इस तरह अन्यायपूर्वक कमाये हुए धन से मद्यादि का सेवन करते हुए, कदम कदम पर घात, वध और बंधन वगेरे प्रहारों को सहन करते हुए, घूमते-घूमते मगधदेश के पृथ्वीपुर नगर में आ पहुंचा । नगर में किसी माली के यहाँ नोकर के रूप में रहा । वहाँ भी पत्र, फल और पुष्पादि की चोरी करके बेचने लगा । वहाँ से भी निकाल दिया तो किसी श्रेष्ठि की दुकान में नौकरी करने लगा । वहाँ भी अपने कुलक्षणों की वजह से दुकान में चोरी करते हुए पकड़ा गया । शेठजी ने निकाल दिया फिर भी किसी भी हालत में वह व्यसन छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। श्रेष्ठि की दुकान से निकल कर ईश्वरदत्त नामक व्यापारी के यहां नौकरी करने लगा । व्यापारी व्यापार करने के लिए जहाज में अन्य देश में जा रहा था तब धन का लालची भीमसेन भी जहाज में चढ़ जाता है। एक महिने तक समुद्र की सफर करने के बाद एक रात परवाले के अंकुरो के बीच जहाज फंस जाता है। बहुत कोशिश के बावजूद भी जहाज हिलता नहीं है। दिन पर दिन गुजर रहे थे । जहाज में रहा हुआ खाने-पीने का सामान भी खत्म हो रहा था। उस वक्त चिंतातुर ईश्वरदत्त ने पंचपरमेष्ठि नमस्कार का स्मरण करके समुद्र में कूदकर मरने का निश्चय किया । तभी अचानक एक तोता वहाँ आकर बोलने लगा कि, "हे श्रेष्ठि, आपको मरने की जरूरत नहीं है। आपको जीने का उपाय बताता हैं। आप मुझे सिर्फ एक पक्षी मत समझो, मैं तो सामने दिख रहे पहाड का अधिष्ठायक देव हूँ। आपके प्रति दयाभाव के कारण मैं यहा आया है। आपमें से कोई एक अगर समुद्र में कूदता है और तैरकर पर्वत के ऊपर रहे हुए भारंडपक्षी को उडायेगा तो उसके पंखों की पवन से आपका जहाज परवाले की पकड़ से छूट जायेगा और सब का जीवन बच जायेगा।" अधिष्ठायक देव रूपी तोते द्वारा बताये हुए उपाय को जहाज में घोषणा करता है कि, "कोई एक व्यक्ति इस काम के लिए तैयार होगा तो अनेक लोगों का जीवन भयमुक्त हो जायेगा । कोई मरने के लिए तैयार नहीं हो रहा था तब धन का लालची भीमसेन, सौ दीनार पाने की इच्छा से तैयार हो गया। और तोते द्वारा बताए हुए उपाय से भारंडपक्षी को उड़ाया । जहाज उसके ३९

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