Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 62
________________ - मुख्य शिखर से उत्तर दिशा तरफ उस दिशा का रक्षक महाबलवान मेघनाद है। * पश्चिम दिशा का रक्षक, वांछित अर्थ को देनेवाला रत्नमेघनाद है। * पूर्वदिशा में सिद्धिविनायक नामक देव है। दक्षिण दिशा में सिंहनाद नामक देव है। इन चारों देवों से शिखर चतुर्मुखजी की तरह दिखता है। मुख्य शिखर से चारो दिशाओं में दो-दो छोटे शिखर हैं, वहा मृत्यु पाए हुए अथवा जलाने में आए हुए मनुष्य प्राय:देव बनते हैं। वहाँ रहकर तपश्चर्या करने से और श्री नेमिनाथ भगवान का ध्यान धरने से मनुष्य अष्टसिद्धि को प्राप्त कर अन्त में मोक्ष पद को प्राप्त करते हैं। इस शिखर पर छायावृक्ष, घटादार कल्पवृक्ष, काली चित्रकवेली, वांछित फल देनेवाली लतायें, रस कूपिका आदि अनेक पदार्थ हैं जो प्राणियों को अपने पुण्य से ही प्राप्त होते हैं। इस गिरिवर के प्रत्येक वृक्ष में, प्रत्येक सरोवर में, प्रत्येक कुएँ में, प्रत्येक द्रह में, प्रत्येक स्थान में, प्रत्येक शिखर में श्री नेमिनाथ भगवान के ध्यान में सदा तत्पर ऐसे अनेक देवताओं का निवास किसी कन्या के हार के मध्य में रहे हुए मुख्य रत्न के समान सभी शिखरों के मध्य में ऊंचे शिखर पर श्री संघ के मनोवांछित पूर्ण करनेवाली सिंहवाहिनी अंबिकादेवी का निवास है। जहाँ रहकर श्री नेमिनाथ परमात्मा ने थोड़ा सा पीछे मुड़कर देखा था. उनके बिंब के द्वारा पवित्र ऐसा वह शिखर "अवलोकन" के नाम से प्रसिद्ध है। अंबागिरि के दक्षिण दिशा तरफ सभी शस्त्रों द्वारा युद्ध में मदोन्मत्त ऐसे शत्रुओं के समूह को रोकनेवाला गोमेध यक्ष रहा हुआ है। उत्तर दिशा में संघ के विघ्नसमूह को नाश करने में चतुर ऐसी प्रसन्ननयनोवाली महाज्वाला देवी रही हुई है। कृष्णवासुदेव ने पूजा करते समय अपना छत्र जिस शिला पर रखकर वापिस लिया था, वह शिला लोक में "छत्रशिला" के नाम से प्रसिद्ध है। इस गिरिवर पर ऐसे अनेक शिखर और गुफाएँ है, जहाँ जिनेश्वर परमात्मा की सेवा में तत्पर ऐसे अनेक देवताओं ने आश्रय लिया है। इसी कारण से यह गिरि स्वर्ग से भी अत्यन्त मनोहर और देवतामय हो ऐसा लगता है।

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