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श्री रैवतगिरि गिरिराज के गौरववंत जिनालय आदि
रैवतगिरि महातीर्थ के पर्वत पर आए हुए जिनालयों के निर्माण में विशिष्ट कार्यकुशलता के दर्शन होते हैं। शिल्पकला
के सौंदर्य की विविधता के कारण प्रत्येक जिनमंदिर अपना विशिष्ट व्यक्तित्व धारण करता है। आबु देलवाडा - राणकपुर-जेसलमेर आदि जिनालयों की कलाकृति और बारीक-बारीक नक्शी की याद दिलाए ऐसी विशिष्ट कलाकृति इस गिरनार महातीर्थ के जिनालयों में देखने को मिलती है। मनोहर और नयनरम्य ऐसे जिनालयों की जिनप्रतिमा और कला कुशलता को निहारते हुए तृप्ति नहीं होती ।
(१) श्री नेमिनाथजी की ट्रंक :
इस किल्ले के मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करते हुए बायी ओर श्री हनुमान की तथा दायीं ओर कालभैरव की देवकुलिका आती है । वहाँ से १५-२० कदम आगे बायी ओर श्री नेमिनाथजी की ट्रंक में जाने का मुख्य द्वार आता है, जहाँ 'शेठ श्री देवचंद लक्ष्मीचंदनी पेढी गिरनार तीर्थ' ऐसा लिखित बोर्ड लगाया गया है। इस मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करते हुए बायीं और दायीं ओर पूजारी - चौकीदार-मेनेजर आदि कर्मचारियों के रहने के लिए कमरे हैं। वहाँ से आगे बायीं ओर पानी की प्याऊ और ऊपरनीचे यात्रिकों के विश्राम के लिए धर्मशाला के कमरे बनवाये गये हैं। सामने की तरफ यात्रिकों के लिए शौचालय की व्यवस्था भी रखी गयी है। दायी तरफ शेठ देवचंद लक्ष्मीचंद पेढी की ऑफिस आती है। आगे बढते हुए दायीं तरफ मुड़कर वापस बायीं ओर मुडने पर बायें हाथ पर यात्रिक भाई-बहनों के लिए स्नानगृह बनवाया गया है। वहाँ से आगे बढते हुए स्नान के लिए गरम पानी बनाने का कमरा है। तथा दायीं ओर पीने के लिए उबले हुए पानी का कमरा है। वहाँ से आगे गिरनार मंडन श्री नेमिनाथ परमात्मा के मुख्य जिनालय के दक्षिण दिशा तरफ का प्रवेश द्वार आता है। उस द्वार से प्रवेश करते ही श्री नेमिनाथ भगवान के मुख्य जिनालय का प्रांगण प्रारंभ होता है। यह चौक १३० फूट चौडा और १७० फुट लम्बा है, जिसमें मुख्य जिनालय की प्रदक्षिणा भूमि में ८४ देवकुलिका है ।
जिनालय के दक्षिण द्वार के बाहर ही दायीं ओर श्री अंबिकादेवी की देवकुलिका है ।
श्री अंबिका देवी की देवकुलिका : गिरनार महातीर्थ तथा श्री नेमिनाथ भगवान के शासन की अधिष्ठायिका श्री अंबिका देवी
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