Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 96
________________ की सुंदर मूर्ति है । उसका अचिन्त्य प्रभाव है । जिनालय में प्रवेश करने से पहले उसके दर्शन अवश्य करने चाहिए। (i) श्री नेमिनाथ जिनालय : श्री नेमिनाथ भगवान (६१ इंच) श्री नेमिनाथ जिनालय के प्रागंण में प्रवेश करते ही श्री नेमिनाथ भगवान के विशाल एवं भव्य गगनचुंबी शिखरबंधी जिनालय के दर्शन होते हैं। अत्यन्त आहलाददायक इस जिनालय के दक्षिण द्वार से प्रवेश करते ही ४१.६ फुट चौडा और ४४.६ फुट लंबा रंगमंडप आता है। उसके मुख्य गर्भगृह में गिरनार गिरिभूषण श्री नेमिनाथ परमात्मा की मनहरणी श्यामवर्णी नयनरम्य प्रतिमा बिराजमान है। उसके दर्शन करते ही गिरिवर आरोहण की थकान के साथ-साथ भवभ्रमण की थकान भी उतर जाती मूलनायक श्री नेमिनाथ परमात्मा की यह प्रतिमा पूरे विश्व में वर्तमान में सबसे प्राचीनतम प्रतिमा है। यह प्रतिमा अतीत चोवीशी के तीसरे सागर नामक तीर्थंकर के समय में पांचवें देवलोक के ब्रह्मेन्द्र के द्वारा बनवायी गयी थी। यह प्रतिमा १६५७५० वर्ष न्यून २० कोडाकोडी सागरोपम वर्ष प्राचीन है। श्री नेमिनाथ भगवान के निर्वाण के २००० वर्ष के बाद काश्मीर देश से संघ लेकर आए हुए श्री रत्नसार नामक श्रावक ने शासन अधिष्ठायिका श्री अंबिका देवी की आराधना करके उनकी सहायता से यह प्रतिमा प्राप्त कर, प्रतिष्ठा करवायी थी। अरबों वर्ष तक पाचवें देवलोक में तथा श्री नेमिनाथ प्रभु की हाजरी में द्वारिका नगरी में श्री कृष्ण के जिनालय में यह प्रतिमा पूजी गयी है। यह प्रतिमा रत्नसार श्रावक के द्वारा प्रतिष्ठित होने के बाद १,०३,२५० वर्ष तक इसी स्थान पर पूजी जायेगी, ऐसे श्री नेमिप्रभु के वचन होने से पांचवें आरे के अंत तक यह प्रतिमा यहीं पूजी जायेगी। बाद में शासन देवी अंबिका के द्वारा यह प्रतिमा पाताल लोक में ले जाकर पूजी जायेगी। इस तरह यह प्रतिमा तीनों लोक में पूजी जायेगी। लगभग ८४,७८६ वर्षों से यह प्रतिमा इसी स्थान पर बिराजमान है। आज तक इस जिनालय के अनेक जीर्णोद्धार मूलनायक की प्रदक्षिणा भूमि तथा रंगमंडप में तीर्थंकर परमात्मा की प्रतिमायें तथा यक्ष-यक्षिणी एवं गुरु भगवंतों की प्रतिमायें बिराजमान हैं। इस रंगमंडप में आगे २१ फुट चौडा और ३८ फुट लम्बा दूसरा रंगमंडप आता है, जिसके मध्य मे गणधर भगवंतों की लगभग ८४० चरण पादुका की जोड अलग-अलग दो पबासण पर स्थापित की गयी हैं। इनकी प्रतिष्ठा वि.सं. १६९४ चैत्र वद बीज के दिन की गयी है। आस-पास तीर्थंकर परमात्मा की प्रतिमायें बिराजमान की गयी हैं। इस जिनालय

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