Book Title: Chalo Girnar Chale
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Girnar Mahatirth Vikas Samiti Junagadh

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Page 114
________________ गिरनार की अजब-गजब की बातें गरवागढ़ गिरनार के पहाड़ों में अनेक गुफायें और गुप्तस्थान हैं, जिनके कारण गिरनार बहुत स्थानों में काफी खोखला दिखाई देता है । इन पहाडों में अनेक संत, महंत, सिद्ध पुरूष, योगी, महात्मा तथा अनेक अघोरी बाबा और महात्माओं ने निवास करके अनेक प्रकार की साधनाओं को सिद्ध किया है । आज भी अनेक विभूतियाँ इस गिरनार की गुफाओं में आत्मध्यान में लीन होकर आत्म-साधना कर रहे हैं ऐसी जानकारी मिलती हैं, जिनकी उम्र १००-२००-३०० तथा सैकडों वर्षों की भी होती है । जैन ग्रंथों में तथा अन्य धर्मग्रंथों में भी यक्षादि अनेक आत्मायें गिरनार में बसे हुए है ऐसा उल्लेख आता है । इन संतों, महंतों, सिद्धयोगी तथा यक्षादि आत्माओं की अनेक कथाएँ और चमत्कारों की बाते आज भी लोगों द्वारा जानने को मिलती है, जिनमें से कुछ बातों का यहा उल्लेख किया जा रहा है । (१) जुनागढ के गोरजी कांतीलालजी के कहने के अनुसार जुनागढ के कुछ भाई गध्धेसिंह के पर्वत परं जाकर गधैया के सिक्के इकट्ठे करके गठरी बांध कर बोरदेवी के मुकाम पर आये, उस समय बोरदेवी में उपस्थित बाबा को उन्होंने तंग किया। उससे बाबा का क्रोध आसमान पर चढते ही कुछ तो पागल होकर के वही के वहीं मृत्यु को प्राप्त हुए । कुछ भाग गये उनकी रास्ते में ही मृत्यु हो गई तथा कुछ जुनागढ़ में पहुंचने के बाद मृत्यु को प्राप्त हुए थे । (२) गोरजी कांतीलालजी कहते थे कि गिरनार पर 'पत्थर चट्टी' की जगह में रहनेवाले हरनाथगर नामक अघोरी ने एक बार किसी ब्राह्मण के पुत्र को उठाकर लाया तथा उसका भक्षण किया था । वह ब्राह्मण पुत्र को ढूंढते ढूंढते गिरनार पर आया परन्तु पुत्र न मिलने से अत्यंत दुःखी हृदय से गिरनार के अधिष्ठायक देवों से प्रार्थना करता है । ब्राह्मण के आनंद से तुष्ट हुए वरदत्त शिखर के अधिष्ठायक देव जागृत हुए । उनकी सहायता से वह ब्राह्मण पुत्र पुनः जीवित हुआ और अधिष्ठायक देव ने अघोरी की लकडी द्वारा बहुत पीटाई करने पर वह अघोरी लंगडा हो गया । उसके बाद बहुत से अघोरी गिरनार छोड़कर चले गये । (३) गिरनार के श्री नेमिनाथ दादा की पूजा करनेवाली आराधक आत्मायें धन्य बन जाती है। अरे ! बालब्रह्मचारी नेमि प्रभु के दर्शन-पूजन से कितने ही आराधक आत्माओं ने वासनाओं का वमन होते हए अनुभव किया है। आज भी अनेक मुमुक्षु आत्मायें दीक्षापूर्व श्री नेमिप्रभु तथा दीक्षा कल्याणक भूमि के दर्शन-पूजन-स्पर्शन द्वारा संयम अंगीकार करने में आने वाले विघ्न तथा अंतरायों को तोड़ने में समर्थ बनते हैं। कितनी ही आत्मायें इस गिरनार की भक्ति १०७

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